झुमरी तिलैया(कोडरमा)। जैन धर्म का दशलक्षण पर्युषण महापर्व 31 अगस्त, बुधवार से जैन संत वाक केसरी मुनि श्री विशल्य सागर गुरुदेव के सानिध्य में दस दिनों तक बड़े ही धूमधाम और भक्ति भाव पूर्वक मनाया जाएगा। गुरुदेव के मुखारविंद से प्रतिदिन प्रातः महा विश्व शांतिधारा का पाठ लाखों मंत्रों के द्वारा किया जाएगा। इस महापर्व के दिनों में पूरे विश्व और भारतवर्ष के जैन धर्मावलंबी दस दिनों तक व्रत, तप, उपवास की साधना में लीन रहते हैं। भक्तजन इन दस दिनों तक सात्विक भोजन और एकासन करते हैं। कई लोग तो दस दिनों तक बिना कुछ खाए-पीए निर्जल उपवास करते हैं। प्रतिदिन प्रातः 4:00 बजे से ही महिलाएं, पुरुष, बच्चे मंदिर में धर्म साधना के लिए पहुंचने लगते हैं। डॉक्टर गली और पानी टंकी रोड जैन मंदिर को प्रकाश की रोशनी से सजाया गया है।रात्रि में महाआरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा।
पूज्य गुरुदेव राजकीय अतिथि विशल्य सागर जी गुरुदेव ने मंगलवार को अपनी अमृतवाणी में कहा कि जैन धर्म में पर्युषण पर्व का सर्वाधिक महत्व है। भादो महीने में मनाया जाने वाला यह महापर्व आत्म कल्याण और शुद्धि का पर्व है। इन दिनों में मनुष्य अपनी सभी बुराइयों का अंत कर अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। जीवन को प्रकाश मय और नई दिशा प्रदान कर सकता है। गुरुदेव ने पर्व का अर्थ समझाते हुए कहा कि पर्व शब्द में ढाई अक्षर हैं और यह ढाई अक्षर प्रेम, संत, धर्म, भक्ति, पुण्य, आत्मा, श्रद्धा, त्याग के वाचक हैं। उत्तम क्षमा से प्रारंभ होने वाला यह पर्व धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक नव चेतना को जागृत करने में अपनी पृथक भूमिका प्रदान करता है। इस पर्व के समय प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक धार्मिक संस्कार जागृत होते हैं, जिससे व्यक्ति स्वयं के साथ अपने परिवार और राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका निभा सकता है। यह जानकारी जैन समाज के मीडिया प्रभारी राज कुमार अजमेरा ओर नवीन जैन ने संयुक्त रूप से दी।
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