11
Jul
छहढाला
चौथी ढाल
सम्यग्ज्ञान के दोष व मनुष्य भव की दुर्लभता
तातैं जिनवर कथित तत्त्व, अभ्यास करीजै।
संशय विभ्रम मोह त्याग, आपो लख लीजै।।
यह मानुष-पर्याय, सुकुल, सुनिवो जिनवानी।
इह विध गये न मिलै, सुमणि ज्यों उदधि समानी।।6।।
अर्थ – इसलिए श्री जिनेन्द्रदेव के द्वारा उपदेशित जीवाजीव आदि तत्त्वों का अभ्यास अर्थात् पठन-पाठन-मनन करें और सम्यक्ज्ञान के तीनों दोषों-संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय को त्याग कर अपने आत्मस्वरूप को जानें। जिस प्रकार समुद्र में डूबा हुआ अमूल्य रत्न फिर हाथ नहीं आता है, उसी प्रकार यह मनुष्य पर्याय पाना, उसमें भी उत्तम श्रावक कुल पाना और सर्वोपरि जिनवाणी के श्रवण जैसा दुर्लभ अवसर व्यर्थ गँवा देने पर बारम्बार प्राप्त नहीं होता इसलिए यह अपूर्व अवसर यूँ ही न खोने दें।
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