मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 40वां दिन। आज चिंतन में बहुत छोटी बात आई, पर सुखी जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण है। कितना भी बड़ा शत्रु हो, कितनी भी बड़ी घटना घट जाए, कोई कितना भी हमारा बुरा करे पर आपस में बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए। आपसी बातचीत बंद होते ही आपसी वाद-विवाद पर मंथन नहीं हो पाता है। जब मंथन या बातचीत नहीं होती तो विवाद के सुलह का रास्ता बंद हो जाता है। आपसी विचारों का आदान- प्रदान नहीं होने से अंदर ही अंदर एक दूसरे के प्रति हम नकारात्मक कल्पना करने लगते हैं। उसके बारे में उल्टा- सीधा सोचते हैं और न जाने कौन- कौन सी पुरानी बातें ध्यान में आती हैं। हम अपने आप ही सोचने लगे जाते हैं कि उसने मेरे साथ ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसके साथ मैंने ऐसा किया था या उसने मेरी बात का बुरा मान लिया होगा।
विवाद के चलते अगर आपसी बातचीत चलती रहे तो मतभेद हो सकते हैं, पर एक न एक दिन विवादों का सुलह सम्भव है। बातचीत बंद होने से मनभेद हो जाता है। यह मनभेद ही इंसान को विचारों,बातों, क्रियाओं से हैवान बना देता है। इंसान से हैवान बनने पर इंसान को सबसे अधिक दुख,कष्ट और अशुभ ध्यान होता है। मतभेद के कारण लड़ाई तो हो सकती है, पर रिश्ते नहीं टूटते हैं। पर मनभेद के कारण रिश्ते तक टूट जाते हैं। मतभेद होने पर हम विचारों का आदान- प्रदान कर सकते हैं, उस पर विचार कर सकते हैं। विवादों को दूर करने लिए एक साथ बैठने का रास्ता खुला रहता है, पर मनभेद होने से यह सब कुछ नहीं होता है। बस अंदर ही अंदर एक दूसरे के लिए विचारों का विष तैयार करते रहते हैं। विचारों के विष का विस्फोट होता है तो हमें अपने शत्रु ही शुत्र नजर आते हैं और एक दूसरे का नाश करने में लगे रहते हैं।
सोमवार, 13 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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