भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 21
सर्व वशीकरण्
मन्ये वरम् हरि-हरादय एव दृष्टा,
दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोष -मेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः,
कश्चिन् -मनो हरति नाथ ! भवान्तरेऽपि ॥21॥
अन्वयार्थ – नाथ – हे स्वामिन् | हरि हरादयः – हरि हर आदि देवों का | दृष्टा – देखना | एव – ही | वरं – उत्तम है | मन्ये – ऎसा मैं मानता हूँ | येषु – क्योंकि उनके | दृष्टेषु – देख लेने पर ही | हृदयम् – हृदय | त्वयि – आप में | तोषम् – संतोष को | एति – प्राप्त होता है | भवता- आपको | वीक्षितेन – देखने से | किम् – क्या (लाभ) | येन – जिससे कि | भुवि – भूमण्डल पर | अन्यः – अन्य | कश्चित् – कोई देव | भवान्तरे – जन्मांतर में | अपि – भी | मनो – मन को | न हरति – हरण नहीं कर सकता है।
अर्थ-हे स्वामिन ! देखे गये विष्णु महादेव आदि देव ही मैं उत्तम मानना हूँ, जिन्हें देख लेने पर मन आप में संतोष को प्राप्त करता है । किंतु आपको देखने से क्या लाभ ? जिससे कि पृथ्वी पर कोई दूसरा देव जन्मांतर में भी चित्त को नहीं हर पाता ।
मंत्र जाप- ऊँ नमः श्री मणिभद्र जय विजय अपराजिते सर्व सौभाग्यं सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
ऊँ ह्रीं भगवते शत्रु भय निवारणाय नम:
ऋद्धि जाप- ऊँ ह्रीं अर्हं णमो पण्ण समणाणं झ्रौं झ्रौं नमः स्वाहा ।
अर्घ्य – ऊँ ह्रीं सर्व दोष हर शुभ दर्शनाय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं सर्व दोष हर शुभ दर्शनाय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जाप विधि – लाल कपडॆ,लाल माला, लाल आसन पर बैठकर बयालीस दिन तक प्रतिदिन 108 बार काव्ऋद्धि मंत्र, मंत्र जाप का स्मरण करते हुए जाप करना चाहिए ।
कहानी
वचन का मूल्य
एक बार की बात है, एक नगर में पति-पत्नी श्रीधर और रूपश्री रहते थे। जहां श्रीधर को धर्म में जरा भी रुचि न थी, वहीं उसकी पत्नी बहुत ही धार्मिक महिला था। वह हर रोज जिनदर्शन के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। जिनालय उसके घर से पांच मील दूर था। विवाह के नौ दिन तक उसने अपने व्रत का पालन किया लेकिन 10वें वर्षा की झड़ी लग गई। सारी नगरी पानी-पानी हो गई। श्रीधर के परिवार में सभी ने भोजन कर लिया लेकिन रूपश्री अब तक भूखी थी। सभी ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह अपनी प्रतिज्ञा पर अटल थी। नगर में अब तो बाढ़ ही आ गई। रूपश्री ने सात दिन से भोजन नहीं किया था। अब श्रीधर को भी चिंता होने लगी और उसने पत्नी के कहने पर भक्तामर के 21वें श्लोक का पाठ पूरे विधि-विधान से करना शुरू किया। तब जिनशासन की देवी मीरा प्रकट हुईं। श्रीधर ने उनसे अपने पत्नी के निराहार रहने की बात कही। देवी रूपश्री को परिवार सहित वायुरथ पर सवार होकर जिनालय ले गईं। श्रीधर ने भी जैन धर्म धारण कर लिया।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भक्तामर के 21वें श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से करने से भगवान भी आपकी हर मुश्किल में सहायता कर आपके वचन का मूल्य रखते हैं।
चित्र विवरण- चित्र का भाव यह है कि संसार में प्राय: सभी देव,देवियों के साथ सराग ध्यानस्थ स्थिति में मिलते हैं । अपूर्ण जिन्हें देखकर मेनेजर परम संतुष्ट व परितृत हो जाता है ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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