भक्तामर स्तोत्र
काव्य – 8
सर्वारिष्ट निवारक
मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद-
मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ।
चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,
मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ॥8॥
अन्वयार्थ – हे नाथ ! – हे स्वामिन् । इति मत्वा – ऎसा मानकर । तनुधिया –अल्प बुद्धि । अपि – भी । मया- मेरे द्वारा । इदं-यह । तव – तुम्हारा । संस्तवनम् – स्तवन । आरभ्यते – प्रारम्भ किया जा रहा है । तव – आपके । प्रभावात् – प्रभाव से । सतां – सज्जनों । चेत: – चित्त को । हरिष्यति – हरण करेगा । ननु – निश्चय से । उदबिन्दु: – जल की बून्द । नलिनीदलेषु: – कमलिनी के पत्तों पर । मुक्ताफल – मुक्ता फल (मोती) की । द्युतिम् – कांति (शोभा) को । उपैति – प्राप्त होती है ।
अर्थ- हे स्वामिन ! ऎसा मानकर मुझे मन्दबुद्धि के द्वारा भी आपका यहाँ स्तवन प्रारम्भ किया जाता है,जो आपके प्रभाव से सज्जनों के चित्त को हरेगा । निश्चय से पानी की बूँद कमलिनी के पत्तों पर मोती के समान शोभा को प्राप्त करती है ।
मंत्र जाप – ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्र: अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झ्रौं झ्रौं नम: स्वाहा ।
ऊँ ह्रीं लक्ष्मणरामचन्द्र देव्यै नम: स्वाहा ।
ऋद्धि मंत्र – ऊँ ह्रीं अर्हं णमो अरिहंताणं णमो पादाणु – सारिणं झ्रौं झ्रौं नम: / स्वाहा
अर्घ्य – ऊँ ह्रीं अनेक संकट संसार दु:ख निवारणाय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
दीप मंत्र – ऊँ ह्रीं अनेक संकट संसार दु:ख निवारणाय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभनाथ जिनेन्द्राय दीपं समर्पयामि स्वाहा ।
जाप विधि – अरीठा के बीज की माला से 29 दिन तक प्रतिदिन 1000 बार ऋद्धि तथा मंत्र का जाप जपते हुए घृत मिश्रित गूगल की धूप का क्षेपण करें । सफेद कपडॆ,सफेद माला,सफेद आसन पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिक्षा कि और मुखकर जाप आदि करना चाहिए ।
कहानी –
यथा नाम तथा गुण
आचार्य मानतुंग स्वामी ने उपसर्ग के समय भक्तामर की रचना पूरी श्रद्धा से की तो उनके सारे कष्ट दूर हो गए। ऐसी ही एक कहानी है धनपाल नाम के एक व्यक्ति की, जो नाम का तो धनपाल था, लेकिन धन से उसका दूर-दूर तक कोई नाता न था। साथ ही वह निसंतान भी था। वह सदा चिंता में घुला रहता। उसे भक्तामर स्त्रोत मौखिक रूप से याद था लेकिन एक भी श्लोक का अर्थ उसे ज्ञात न था। एक दिन उसके शहर मे दो जैन मुनि आए। धनपाल उन्हें अपनी व्यथा प्रकट करने गया। दोनों ने उससे कहा कि तुम भक्तामर स्त्रोत का पाठ उसका अर्थ और भाव समझ कर करो। उन्होंने उसे भक्तामर के कुछ श्लोकों का अर्थ भी समझा दिया। अर्थ समझने के बाद आठवें श्लोक का उसने पूरी श्रद्धा के साथ पाठ कया। एक दिन आठवें श्लोक की देवी महिमा ने उसे दर्शन देकर उसे धन का आशीर्वाद दिया। धनपाल ने उस धन का उपयोग परोपकार में किया और सदा के लिए अमर हो गया।
शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि भक्तामर के आठवें श्लोक का पाठ पूरी भक्ति से करता है, वह धनवान बन जाता है। इसके साथ ही हमें भक्तामर स्त्रोत का पाठ उसका अर्थ और भाव समझ कर करना चाहिए।
चित्र विवरण- सरोवर में खिले हुए कमलों पर ओस कण मोती के समान शोभित हो रहे हैं । आचर्य मानतुंग के भक्तिपूर्ण वचन भी उज्जल मोती के समान शोभायान हैं ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
Give a Reply