27
May
छहढाला
तीसरी ढाल
निश्चय रत्नत्रय का स्वरूप
पर-द्रव्यन तें भिन्न आप में, रुचि सम्यक्त्व भला है।
आप रूप को जानपनो, सो सम्यग्ज्ञान कला है॥
आप रूप में लीन रहे थिर, सम्यक्चारित्र सोई।
अब व्यवहार मोक्ष मग सुनिये, हेतु नियत को होई॥2।।
अर्थ- पद्गलादि पर-वस्तुओं से अपनी आत्मा के स्वरूप को भिन्न श्रद्धान करना निश्चय सम्यग्दर्शन है। पर वस्तुओं से अलग आत्मा के स्वरूप को जानना निश्चय सम्यग्ज्ञान है। पर वस्तुओं से अलग होकर आत्मरूप में स्थिरता पूर्वक रम जाना निश्चय सम्यक्चारित्र है। अब व्यवहार मोक्षमार्ग को सुनो,जो निश्चय मोक्षमार्ग का कारण है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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