आज की कहानी आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के जीवन से है । बात लगभग वर्ष 1930 की है, जब आचार्य श्री शांतिसागर महाराज धौलपुर जिले के राजाखेड़ा इलाके में आए थे। तब एक धर्म विद्वेषी ब्राह्मण अपने कुछ बदमाशों के साथ तलवार लेकर आया। वे सभी आचार्य श्री के चारों ओर खड़े हो कर उन्हें मारने का प्रयत्न करने लगे लेकिन आचार्य श्री को उनकी साधना के प्रभाव से कुछ नहीं हुआ। उस समय आचार्य श्री न तो घबराए, न उन्हें भय लगा और न ही उन्हें इस बात की चिंता थी कि क्या होगा। वह तो बस प्रभु स्मरण में लीन कर अपनी आत्मा का चिंतन करते रहे। शास्त्रों में कहा है कि जिसके भाव निर्मल होते हैं, उसका कर्म भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इतने में वहां पुलिस के उच्चाधिकारी भी पहुंच गए और उन दुष्टों को पकड़ लिया। पुलिस के अधिकारियों ने आचार्य श्री ने पूछा कि इन्हें क्या दंड दिया जाए। इस पर आचार्य श्री ने जो उत्तर उस समय दिया, उसे सुनकर सब आश्चर्यचकित रह गए। आचार्य श्री ने कहा कि इन्हें छोड़ दो, हमारा इनसे कोई बैर-भाव नहीं है। जब तक तुम इन्हें नहीं छोड़ोगे, तब तक हमारा अन्न-जल का त्याग रहेगा। ऐसे थे हमारे आचार्य श्री शांति सागर महाराज, जिनके चेहरे पर हर समय शांति रहती थी और दुष्टों पर भी वह अपनी अमृत वर्षा करते थे।
09
May
Please follow and like us:
Give a Reply