कहानी:- ‘बिना नींव का मकान’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

भगवान बुद्ध के काल में किसी नगर में राम और श्याम नामक दो धनी व्यापारी रहते थे। वे दोनों ही अपने धन और वैभव का बड़ा प्रदर्शन करते थे. एक दिन राम अपने मित्र श्याम के घर उससे भेंट करने के लिए गया। राम ने देखा कि श्याम का घर बहुत विशाल और तीन मंजिला था। 2,500 साल पहले तीन मंजिला घर होना बड़ी बात थी और उसे बनाने के लिए बहुत धन और कुशल वास्तुकार की आवश्यकता होती थी। राम ने यह भी देखा कि नगर में सभी निवासी श्याम के घर को बड़े विस्मय से देखते थे और उसकी बहुत बढ़ाई करते थे। अपने घर वापसी पर राम बहुत उदास था कि श्याम के घर ने सभी का ध्यान खींच लिया था। उसने उसी वास्तुकार को बुलवाया जिसने श्याम का घर बनाया था। उसने वास्तुकार से श्याम के घर जैसा ही तीन मंजिला घर बनाने को कहा। वास्तुकार ने इस काम के लिए हामी भर दी और काम शुरू हो गया। कुछ दिनों बाद राम काम का मुआयना करने के लिए निर्माणस्थल पर गया। जब उसने नींव खोदे जाने के लिए मजदूरों को गहरा गड्ढा खोदते देखा तो वास्तुकार को बुलाया और पूछा कि इतना गहरा गड्ढा क्यों खोदा जा रहा है। मैं आपके बताये अनुसार तीन मंजिला घर बनाने के लिए काम कर रहा हुं। वास्तुकार ने कहा, सबसे पहले मैं मजबूत नींव बनाऊंगा, फिर क्रमशः पहली मंजिल, दूसरी मंजिल और तीसरी मंजिल बनाऊंगा। राम ने कहा कि मुझे इस सबसे कोई मतलब नहीं है, तुम सीधे ही तीसरी मंजिल बनाओ और उतनी ही ऊंची बनाओ जितनी ऊंची तुमने श्याम के लिए बनाई थी। नींव की और बाकी मंजिलों की परवाह मत करो। वास्तुकार ने कहा, ऐसा तो नहीं हो सकता। राम ने नाराज़ होकर कहा, ठीक है यदि तुम यह नहीं करोगे तो मैं किसी और से यह कार्य करवा लूंगा। उस नगर में कोई भी वास्तुकार नींव के बिना वह घर नहीं बना सकता था, फलतः वह घर कभी न बन पाया।
सीख – किसी भी बड़े कार्य को सम्पन्न करने के लिए उसकी नींव सबसे मजबूत बनानी चाहिए एवं काम को योजनाबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए।

अनंत सागर
कहानी
(तेतीसवां भाग)
13 दिसम्बर, 2020, रविवार, बांसवाड़ा

अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

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