हृदय में जिनेन्द्र भगवान हों तो कर्म मल शिथिल पड़ जाते हैं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
हींग की डिब्बी में हलवा भर दिया जाए तो हलवे का स्वाद और खुशबू दोनों ही हींग जैसी हो जाएंगे। उसका कारण है कि हलवा भरने से पहले हींग की डिब्बी को साबुन से अच्छे साफ नहीं किया गया और हलवा खाने योग्य नही रहा।
इसी तरह आत्मा रूपी डिब्बी में जब तक राग-द्वेष, अहंकार, ईष्र्या आदि का हींग लगा हुआ तब तक आत्मा का आनंद नही आ सकता है। राग-द्वेष आदि से सहित आत्मा को जिनेन्द्र भगवान की भक्ति रूपी साबुन से स्वच्छ करने पर ही आत्म आनंद आ सकता है। मन को निर्मल, विचारों को स्वच्छ और आचरण को निर्दोष करने के लिए हृदय में जिनेन्द्र भगवान को विराजमान करना चाहिए। जिनके हृदय में जिनेन्द्र भगवान विराजमान होते हैं उनकी आत्मा के राग-द्वेष आदि कर्म मल शिथिल पड़ जाते हैं और आत्मा का आनंद आने लगता है। कल्याण मन्दिर स्तोत्र में कहा गया है कि
हृद्वर्तिनि त्वयि विभो! शिथिलीभवन्ति,
जन्तोरू क्षणेन निबिडा अपि कर्मबन्धा।
सद्यो भुजङ्गम-मया इव मध्य-भाग-
मभ्यागते वन-शिखण्डिनि चन्दनस्य।।८।।
अर्थात- हे प्रभु ! जब आप ध्यान शील भक्तों के हृदय में विराजमान हो जाते हैं , तब उनके भयंकर से भयंकर कर्म बंध भी तत्काल ही शिथिल हो जाते हैं, अर्थात ढ़ीले पड़ जाते हैं। वन मयूर ज्यों ही चंदन के वृक्ष की ओर आता है त्यों ही चंदन पर लिपटे हुए भयंकर सर्प सहसा शिथिल हो जाते हैं। अर्थात भागने लगते हैं, क्योंकि मयूर के सामने सर्प नही ठहर सकते हैं।
अनंत सागर
अंतर्भाव
(बत्तीसवां भाग)
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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