सामाजिक व्यवस्थाएं तब तक मजबूत नही होंगी जब तक कि समाज का विकास ना हो और समाज मजबूत ना हो। सामाजिक व्यवस्थाएं हमें हमारी परम्पराओं से जोड़े रखती हैं। परिवार में प्रेम, वात्सल्य को बढ़ाती हैं। सामाजिक व्यवस्थाओं से ही समाज में संयुक्त परिवार होते थे। इससे परिवार में लाज-शर्म बनी रहती थी और एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रहता था। दुःख और सुख के समय सब एक साथ खड़े मिलते थे, पर आज सामाजिक बंधन नही रहे तो हम देख रहे हैं कि समाज में, परिवारों में स्वच्छंदता आ गई है। आज समाज का भोजन, रहन-सहन, पहनावा और परिवार के मांगलिक कार्यक्रम समाज की परम्पराओं के अनुसार नहीं हो रहे हैं। समाज का हर परिवार स्वच्छंद हो गया है। परिवारों पर बाहर की संस्कृति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसके चलते समाज में बुरी घटनाएं घटित हो रही हैं। कुल और जाति अशुद्ध हो रहे हैं। परिवार, समाज और देश की संस्कृति-संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं।
सामाजिक परम्पराओं का मतलब बन्धन नही है बल्कि यह तो अपने आप को संस्कारित रखने का साधन है। जैसे-जैसे समाज का डर खत्म होता जा रहा है वैसे-वैसे मानसिकता भी अशुद्ध होती जा रही है। इसका असर धार्मिक अनुष्ठानों पर भी पड़ रहा है। हम देख रहे है कि आज धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति समाज का कितना कम रुझान होता है। मैं यह नही कह रहा हूं कि समाज धार्मिक अनुष्ठान नही कर रहा है, कर तो रहा है पर श्रद्धा और विश्वास में कमी आ गई है। आज परिस्थितियां यह बन गई हैं कि हमारे समाज के बच्चे हमारी संस्कृति-संस्कार तो छोड़िए महापुरुषों के जीवन चरित्र को भी नही जानते हैं।
हम सब मिलकर सामाजिक व्यवस्थाओं को मजबूत करें तभी हम अपनी और अपने समाज की पहचान जन-जन तक पहुंचा सकते हैं।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
(छत्तीसवां भाग)
7 दिसम्बर, 2020, सोमवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
07
Dec
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