बच्चों, किसी ज्ञान को अर्जित करना, सीखना, उसमें निपुण होना यह सब एक कला है और उस उत्साह का परिणाम है।यह सब किन्हीं कारणों से होता है कोई मान, सम्मान, पैसे या रुचि के कारण करता है और कोई अपनी आस्था और श्रद्धा को रूपान्तरित करता है।बच्चों, ध्यान रखना जिस भी तरह का ज्ञानार्जन आप प्राप्त कर रहे हो वह अगर मान, सम्मान, पैसे या रुचि के लिए सीख रहे होतो समझना की वह स्थाई नहीं है, वह पुण्य भी नहीं है।उसका परिणाम कुछ कालावधि तक आपको या देखने वालों को शायद अच्छा भी लगे किन्तु इसके नाश होने का डर सदैव बनारहेगा।
वहीं दूसरी ओर उस ज्ञानार्जन का प्रयोग हम पूर्ण आस्था और श्रद्धा के साथ करते हैं तो पुण्य प्राप्त होने के साथ-साथ उसका परिणाम सुंदर आता है, और हमें एक विशिष्ट ऊर्जा की अनुभूति होती है और सबसे बड़ी बात यह कर्म आपको ऐसा आत्मिक संस्कार देगा जिससे जीवन में भय और सन्शय के स्थान पर सदैव नित नवीन सकारात्मकता और आशा बनी रहेगी।
बच्चों, धर्म का भी कुछ वर्तमान में ऐसा ही प्रयोग हो गया है।लोग धर्म से जुड़ तो रहे है ; पर कारण है – परिवार की परंपरा, सम्मान प्राप्त की इच्छा,समाज में अस्तित्व बनाए रखने के लिए, भवन या देखा देखी के कारण आदि धर्म का प्रयोग हो रहा है इसलिए यह कर्म धार्मिक एवं पुण्यात्मक होने के उपरांत भी वर्तमान में दुख दे रहा है और प्रति क्षण दुख बढ़ा रहा है।
तो बच्चों, क्रिया करने से पहले,धर्म ग्रंथों का स्वाध्याय करने से पहले उनके प्रति आस्था और श्रद्धा बना लेना तभी धर्म की शुरुआत करना।एक छोटे से उदाहरण से समझ ले की आप को स्कूल से अध्यापक ने कोई काम दिया और वह आप स्वयं न कर दूसरे से करवाकर ले गए तो तुम्हारे मन में डर रहेगा की कहीं आपसे कोई पूछ ना ले की यह कहाँ से लिखा है या इसका क्या अर्थ है।जब तक आपके अध्यापक कक्षा से बाहर नहीं जाते तब तक किसी भी काम में मन नहीं लगेगा और मन में क्लेश रहेगा।और यह सब इसलिए हुआ की तुम्हें खुद ही पता नहीं था की क्या लिखा है।इसका आशय यह नहीं कि तुममें श्रद्धा और आस्था नहीं है ; क्योंकि श्रद्धा और आस्था तो आपके आत्मिक संस्कार हैं ही किन्तुआपकी बुद्धि ने अब तक इस पर ध्यान नहीं दिया, आपका सम्पूर्ण ध्यान मान सम्मान और धन प्राप्ति की ओर या कहीं और ही है, पर आपकी आत्मा आपको हर क्षण टोकेगी।आपका आत्मिक और शारीरिक स्वभाव मेल नहीं बैठेगा तो तनाव होगा और आपको समझ नहीं आएगा क्या सही है और क्या गलत। बस आज यही हो रहा धर्म तो कर रहे पर आस्था और विश्वाश में कमी है।तो बच्चों ज्ञान आदि अर्जन से पहले आस्था और श्रद्धा बना लो फिर शुरू करें धर्म अनुष्ठान।आज इतना ही आगे फिर बात करेंगे।
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