समाज की सभी राष्ट्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों
आशीर्वाद
आप इस पत्र को अवश्य पढ़ें। यह एक पीड़ा है। यह मेरी नही बल्कि सब की पीड़ा है जो मैं लिख रहा हूँ।
स्त्री अभिषेक, पंचामृत अभिषेक, आर्यिका पूजन और पद्मावती-क्षेत्रपाल पूजन के विवाद सुन-सुन कर कान पक गए हैं। अब तो यह सुनकर चिड़चिड़ापन होने लगा है। जिनके कारण विवाद है वह दिखाने के नाम पर एक मंच पर खड़े हो जाते हैं। देखकर लगता है कोई विवाद है ही नही, लेकिन उन्हीं से जब अकेले में बात करो तो सच्चाई सामने आ जाती है। कई वर्ष हो गए आज तक सुलह नही हुई। कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। इस बीच और कुछ नहीं हुआ बस समाज बंट गया। संत बंट गए। धर्म बंट गया। संस्थाएं बंट गई। नई नई संस्थाएं बन गई। अब क्या बांटना बाकी रह गया? इन विवादों से समाज का जो बड़ा नुकसान हुआ है वह यह है कि धर्म का प्रचार-प्रचार करने वाले युवा तैयार नही हुए। जो तैयार हुए है वे भी विवाद में इतने पड़ गए कि उन्हें पता ही नहीं कि वह क्या कर रहें हैं। वे कन्फ्यूजन में हैं कि कौन सही है और कौन गलत। कुछ का मन है सही काम करें पर वह विवाद में पड़ना नहीं चाहते हैं। सच तो यह है कि हम समाज में धर्म के संस्कार, संस्कृति का प्रचार नही कर रहे है बल्कि आपस में लड़ रहे हैं। प्रचार प्रचार तो उसे कहते हैं जो आचार्य विद्यानंद जी के मार्गदर्शन में भगवान महावीर के 2600 वे निर्वाण वर्ष में भारत सरकार के सहयोग से मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर किया गया।
विवादों के चलते हम आधुनिक तरीके से हमारी आने वाली पीढी को धर्म का इतिहास भी नहीं बता पाते हैं। सच्चाई तो यह है की हमारी युवा पीढ़ी महावीर और आदिनाथ के आलवा अन्य तीर्थंकरों के बारे में नहीं जानती। उन्हें णमोकार मंत्र के महत्व की जानकारी तक नहीं है। यह सब तो जाने दो उन्हें साधु की चर्या के बारे में ही नही पता होगा कि आहार कैसे देते है। हम अपने समाज की एक राष्ट्रीय स्तर की यूनिवर्सिटी तक नही बना पाए। राष्ट्रीय स्तर पर धर्म के प्रचार प्रचार का कोई केंद्र तक नहीं है। तीर्थों का ऐसा विकास नही कर पाए जिससे युवा साथी उनसे जुड़ें। साधुओं के आहार विहार की कोई राष्ट्रीय स्तर की समिति नहीं है। और भी कई समस्याएं हैं जिन पर चिंतन करने की बहुत आवश्यकता है, नहीं तो हम अपनी संस्कृति और संस्कारों को नही बचा पाएंगे।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
(अट्ठाईसवां भाग)
12 अक्टूबर, 2020, सोमवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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