बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक तपस्वी महाराज आए हुए थे। लोग कहते थे कि जो भी उन महाराज से आशीर्वाद लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। पास के गांव से एक व्यक्ति महाराज जी के पास आया और बोला- महाराज जी! मुझे आशीर्वाद दीजिए। महराज ने कहा- जाओ तुम मनुष्य बनो।
आदमी ने पूछा- महाराज जी! ये कैसा आशीर्वाद हुआ, मैं तो पहले से मनुष्य हूं।
महाराज जी ने कहा- जैसे एक चींटी के अंदर सामग्री इकट्ठा करने की आदत होती है, वैसे ही तुम्हारे अंदर भी ज्यादा से ज्यादा सामग्री इकट्ठा करने की आदत है। चींटी तो सिर्फ उतना ही इकट्ठा करती है, जितना कि उसे आवश्यकता होती है, लेकिन तुम तो अपना पूरा जीवन इकट्ठा करने में बर्बाद कर देते हो। इसलिए पहले मनुष्य बनो, तभी मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगा।
दरअसल, उसी आदमी की तरह हम भी जीवन भर चीजों को एकत्र करने में लगे रहते हैं। कभी यह नहीं सोचते कि ये सब चीजें हमारे पास हमेशा नहीं रहेंगी। बस एक चीज है जो मरने के बाद हमारे साथ जाती है, वह है आत्मा।
कहानी से सीख :
आत्मा के अलावा कुछ भी हमारा नहीं है। यही है अकिंचन धर्म। अकिंचन मतलब किंचित मात्र भी। मतलब कुछ भी नहीं है मेरा, यहां केवल मेरी आत्मा ही मेरी अपनी है और यही हमेशा रहने वाली है।
अनंत सागर
कहानी
2 मई 2021
भीलूड़ा (राज.)