स्व और पर कल्याण का साधन रहा दान आज हमारे जीवन में अहम संतुष्टि का साधन बन·र रह गया...
परिचय एक नजर में~ मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
हिन्दुस्तान के हृदय प्रदेश में ज्ञान और प्रज्ञा की धमनियों से सिंचित एक वीतरागी का मन–मस्तिष्क प्राणीमात्र के उद्धार की लौ जगाए है । स्व और स्वत्व को परमार्थ के लिए स्वाहा कर सर्वकल्याण के निमित्त निकला यह वीतरागी कुछ लक्ष्यों और सपनों के लिए समर्पित भाव से अपनी ही चाल से आगे बढ़ता जा रहा है। ‘एकला चलो रे’ के भाव के साथ ही साथ ससंघ भी होने का गुण विरले ही देखने में आता है।
यह प्रकाश पुंज आज अपनी संपूर्ण आभा में आलौकित हो रहा है। वह तेजी के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जा रहा है। उसके पास प्राणी मात्र के कल्याण के लिए इतनी गहरी सोच है कि उसने पूरे भारत को जगतगुरु बनाने के सोपान भी निर्धारित कर लिए हैं। अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर वीतरागी होकर अपनी सम्पूर्ण जीवनी शक्ति उसे पाने में लगाने वाला यह आध्यात्मिक व्यक्तित्व है अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ।
एक दिया बेटियों के नाम
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मानते हैं कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता, जब तक कि उस समाज की बेटियां सशक्त और सुरक्षित न हों। इसलिए वह बेटियों के सुरक्षा के लिए एक दीया बेटियों के नाम अभियान चला रहे हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार हम हर रोज एक दीया भगवान के आगे जलाते हैं, उसी तरह से बेटियों के नाम भी एक दीया जलाएं और उनकी सुरक्षा की कामना करें। अगर सभी लोग मिलकर बेटियों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करेंगे तो निश्चित रूप से बेटियों के प्रति समाज में सकारात्मकता आएगी और उनके प्रति होने वाले अपराध भी कम होंगे। मुनि श्री की भावना है कि कोई भी संगठन भी तब तक आगे नही बढ़ सकता, जब तक उस संगठन में महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर न चलें। इसलिए उन्होंने अपने दोनों संगठनों धार्मिक श्रीफल परिवार और अंतर्मुखी परिवार में महिला शाखाओं अंतर्मुखी महिला परिवार और धार्मिक श्रीफल महिला परिवार की स्थापना की है।
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कवरेज
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मुनि श्री द्वारा लिखी पुस्तक
समर्पण, सरस्वती आराधना, प्रणाम से प्रारम्भ, एक विचार, चारित्र चक्रवर्ती सार, दशाशन दस, दशलक्षण, श्रवणबेलगोला दर्शन (हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़),आगमेश्वर गोमटेश्वर, श्रवणबेलगोला,सावधान-समाधान
पहले बार मुनि द्वारा न्युज पेपर के लिए कवरेज
फरवरी, 2018 में हुए महामस्तकाभिषेक के अवसर पर श्रवणबेलगोला पर दो ऐतिहासिक पुस्तकें भी लिखी हैं। राजस्थान पत्रिका में मुिन श्री द्वारा लिखित श्रवणबेलगोला का इतिहास 22 दिन तक लगातार प्रकाशित हुआ। महामस्तकािभषेक का कवरेज भी उन्होंने इसी अखबार के लिए किया। अखबार ने भी उन्हें पूरा सम्मान देते हुए उनके नाम से सारी खबरें छापीं । उनके द्वारा लिए गए श्रवणबेलगोला और भगवान बाहुबली के फोटो भी इसी अखबार में प्रकाशित हुए। संभवत: यह पहली बार था, जब किसी जैन संत ने किसी अखबार के लिए रिपोर्टिंग की हो ।
48 दिन तक कर चुके हैं मौन साधना
किशनगढ़ चातुर्मास 2018 में 48 दिन कि मौन साधना 2 अगस्त,2018 से प्रारम्भ हुई जो 18 सितम्बर 2018 तक चली । सन 2002 में एक घण्डे से मौन साधना कि साधना कि जो बडते बडते सन 2018 में 24 घण्डे तक पहुच गई । मौन साधन के दौरान मात्र 5 घण्डे ही सोते थे । मौन साधना के दौरान रात्रि 2:30 उठते थे और रात्रि 9 बजे सोते थे । बाकी समय जाप,अनुष्ठान,ध्यान और चिंतन में लीन रहते थे । मौन साधना के दौरान अपने चिंतन को शब्दों मे ढालने का कार्य किया । मौन साधना के दौरान प्रतिदिन अलग अलग मंत्रों कि 5322 मंत्रो कि जाप साधना कक्ष में होती थी । मौन साधना में आहार में अन्न का त्याग रहा 58 दिन रहा ।
अंतर्मुखी मुनि श्री के प्रवचन
अंत: करण की पवित्रता है धर्म, बेटियां शुभकामनाएं हैं, खुशियों का संसार है मां के कदमों में, अहिंसा परम धर्म और धर्म पवित्र अनुष्ठान है, अहिंसा के पुजारी महावीर, णमोकार मंत्र का महत्व, धर्म की राह पर चलकर बनें परमात्मा, आपदाएं इंसान को मजबूत बनाती हैं, साधना! सकारात्मकता से परिपूर्ण जीवन ऊर्जा है मौन, पर कल्याण का साधन… दान! , जीवन की जीवनी ऊर्जा है आध्यात्म, गुरुकुल शिक्षा पद्धति, दस धर्म और जाप प्रमुख हैं ।
देव, शास्त्र और गुरु के प्रति श्रद्धा भी अपने अनुकूल बदल रहे हैं लोग
![देव, शास्त्र और गुरु के प्रति श्रद्धा भी अपने अनुकूल बदल रहे हैं लोग](https://antarmukhipujya.com/wp-content/uploads/2023/08/4444.jpg)
देव, शास्त्र और गुरु के प्रति श्रद्धा भी अपने अनुकूल बदल रहे हैं लोग
श्री 1008 मुनिसुव्रत नाथ दिगम्बर जैन मंदिर में बारह भावना पर प्रवचन भाग- 3
श्री 1008 मुनिसुव्रत नाथ दिगम्बर जैन मंदिर में बारह भावना पर प्रवचन भाग-2
शरीर की क्षमता को पहचान कर तप करें
प्रवचन
वर्ष 2003 में मुनि श्री श्रवणबेलगोला गए । उस समय वह ब्रह्मचर्य अवस्था में थे। उन्होंने स्वामी जी से कहा कि आप मुझे पढ़ाएं , तब स्वामी जी बिना कुछ बोले उन्हें भंडार बस्ती ले गए और मंदिर की परिक्रमा लगाने लगे । कुछ समय बाद वह एक जगह रुके और उन्होंने कहा, ‘देखो, आकाश में चिड़िया और उसके बच्चे उड़ रहे हैं। तब तो उनकी समझ में कुछ नहीं आया। तब स्वामी जी ने कहा, ‘चिडिया अपने बच्चे को जन्म तो देती है, भोजन भी लाकर देती, उसे मौसम से बचाती भी है पर उड़ना नहीं सिखाती। वह बच्चा देखते देखते अपने आप उड़ना सीख जाता है। बस मुनि श्री की समझ में आ गया कि स्वामी जी कहना चाहते हैं कि पढ़ना सिखाया नहीं जाता, वह तो गुरु के पास रहकर और उन्हें देख कर ही खुद सीखना होता है । उसके बाद से उन्होंने स्वामी जी कैसे पढ़ते हैं, क्या पढ़ते हैं, इसी को देखकर पढ़ना प्रारम्भ कर दिया।