छहढाला

पांचवी ढाल

भावनाओं का फल

इन चिन्तत समसुख जागै, जिमि ज्वलन पवन के लागे । जब ही जिय आतम जानैं, तब ही जिय शिवसुख ठानै ॥ 2 ॥

अर्थ – जैसे हवा के लगने से अग्नि प्रज्वलित हो उठती है वैसे भावनाओं – का चिंतन करने से समता रूपी सुख जागृत हो जाता है। जब यह जीव अपनी आत्मा के स्वरूप को पहिचान लेता है उसी समय मोक्ष के सुख को पा लेता है।
• जैसे वायु के संयोग से अग्नि में वृद्धि होती है,वैसे ही भावनाओं के चिंतन से वैराग्य दृढ़ होता है ,जिससे समता में वृद्धि होती है और समता से आत्मिक सुख प्राप्त होता है ।

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