पहली ढाल
नरक की भूख, आयु और मनुष्यगति प्राप्ति का वर्णन
तीन लोक को नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय।
ये दु:ख बहु सागर लौं सहै, करम जोग तैं नरगति लहै।।13।।
अर्थ – नरक में भूख इतने जोर की लगती है कि तीनों लोकों का सम्पूर्ण अनाज खा लेने पर भी वह मिट नहीं सकती, लेकिन वहाँ तो अनाज का एक दाना भी प्राप्त नहीं होता है। इस प्रकार नरक के तीव्र दु:ख इस जीव ने बहुत सागर (सुदीर्घकाल) तक सहे, फिर कहीं शुभकर्म का संयोग मिलता है, तो वह मनुष्यगति में जन्म लेता है।
विशेषार्थ – उन नरकों में यह जीव ऐसे अपार दु:ख कम से कम दश हजार वर्ष और अधिक से अधिक तेंतीस सागरपर्यन्त भोगता है।