आप सभी को पता होना चाहिए कि सातगौड़ा को बचपन से इतना वैराग्य क्यों था? क्योंकि सातगौड़ा लौकिक आमोद-प्रमोद के कामों से दूर रहकर सदैव आस-पास और गांव में होने वाले हर धार्मिक कार्य में उत्साह से भाग लेते थे। वे शांत, सरल और निरुपद्रवी थे, जिद्दी प्रवृत्ति के भी नहीं थे। सातगौड़ा सत्य और मधुर भाषा बोलने में विश्वास रखते थे। अमीर-गरीब में भेद नहीं करते थे और सभी के साथ सकारात्मक दृष्टि रखते थे। कोर्ट-कचहरी के कामों में उनकी कोई रुचि नहीं थी। सातगौड़ा सदैव अहिंसा के प्रचार-प्रसार के लिए अन्य लोगों से बात करते थे। वे सांसारिक बातों को लेकर किसी से भी चर्चा नहीं करते थे। सातगौड़ा राजनीति के बारे में कहते थे कि यह दुख और अशांति का कारण है। इससे दूर रहना चाहिए। भोज ग्राम में वेदगंगा और दूध गंगा नदी के संगम तट पर सातगौड़ा मुनियों को अपने कंधे पर बैठाकर नदी पार करवाते थे। सातगौड़ा खादी का बना बाराबन्दी वाला अंगरखा पहनते थे। धर्म से जितना प्रेम था, उतना ही प्रेम उन्हें धर्मात्माओं के प्रति था। सातगौड़ा जब शिखर जी की वंदना करने गए तो एक वृद्ध माता को अपनी पीठ पर बैठाकर यात्रा करवाई। यह पहाड़ी 27 किलो मीटर के लगभग की है। इसी प्रकार राजगिरि की पंच पहाड़ियों की यात्रा एक वृद्ध पुरुष को अपनी पीठ पर बैठाकर करवाई। सातगौड़ा का मन रहता था कि सब लोग किसी न किसी तरह का धार्मिक कार्य करें और आत्म कल्याण की राह पर प्रशस्त हों।

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