श्रावक:- ‘ऋद्धिधारी मुनियों की आराधना कर कोरोना से स्वयं को बचाएं’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
शरीर स्वस्थ हो तो धार्मिक, सामाजिक कार्य अधिक उत्साह से हो पाते हैं। आज शरीर में कई तरह के रोग होने लगे हैं। रोगों को
श्रावक:- ‘सुखी जीवन के लिए धन नहीं पुण्य कमाएं’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
नीम के पत्तों के रस में कितनी भी शक्कर मिलाओ पर नीम के पत्तों के रस का स्वाद कड़वा ही रहेगा। वह मीठा नही हो
श्रावक :- ‘सत्कर्म को लोभ से नहीं, मानव-धर्म समझकर करें ’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
भगवान की पूजन और भक्ति से, संतों की सेवा से, धार्मिक पुस्तकें पढ़ने से मुझे स्वर्ग या संसारी सुख मिल जाएगा… इस भाव से कुछ
श्रावक:-‘कथा श्री चंद्रगिरी पर्वत की’ – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
श्रावक:-‘कथा श्री चंद्रगिरी पर्वत की’ – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी चंद्रगुप्त सहित बारह हजार मुनियों के साथ श्रवणबेलगोला
श्रावक :-‘हुण्डावसर्पिणी काल’ अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल के बीत जाने पर हुण्डावसर्पिणी काल आता है। आज हुण्डावसर्पिणी काल में होने वाली विशेष घटनाओं के बारे में पढ़ते हैं। इनके
जिनेन्द्र के दर्शऩ मात्र से होती है सम्यक्त्व की प्राप्ति
जिनेन्द्र के दर्शऩ मात्र से होती है सम्यक्त्व की प्राप्ति जिनेन्द्र के दर्शन और उनकी भक्ति सच्चे मानव (श्रावक) का प्रथम कर्तव्य है। जिनेन्द्र भक्ति
श्रावक – ये हैं धन दान के सात क्षेत्र – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज
श्रावक – ये हैं धन दान के सात क्षेत्र – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण पर्व-14 में लिखा है
श्रावक – मुनिवेलाव्रत के पालन से मिलती है कीर्ति – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज
श्रावक – मुनिवेलाव्रत के पालन से मिलती है कीर्ति – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज आहार दान का प्रभाव तो आप सब ने सुना
श्रावक : इच्छाओं पर अंकुश रखें, पूण्य का संचय करें – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज
मनुष्यों को सदैव अपनी इच्छा के परिमाण समझने चाहिए। इस बात का स्मरण रहे कि इच्छाएं ही दु:ख का कारण होती हैं। इच्छा के समान
श्रावक : शाश्वत सुख संयम से ही – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी
श्रावक : शाश्वत सुख संयम से ही – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी भोगमरण का कारण है और पांचों इन्द्रियों भोग का कारण हैं। इस
