श्रवण की संगति से कर्म बदला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

श्रवण की संगति से कर्म बदला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज पद्मपुराण के पर्व 22 में एक कथा है, जो कर्म के फलों

कर भला तो हो भला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

कर भला तो हो भला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज जो जीव किसी का अच्छा करता है तो बदले में उसे अच्छाई ही

कर्म का फल अवश्य मिलता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

कर्म का फल अवश्य मिलता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी यह बात सभी जानते हैं कि जब श्रीराम वनवास का समय व्यतीत कर

वैरभाव का दुख कई भवों तक भोगना पड़ता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

वैरभाव का दुख कई भवों तक भोगना पड़ता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी वैरभाव अनेक जन्मों तक दुःख का कारण बनता है। पद्मपुराण

निर्मल भाव से ही होते है अच्छे कर्म – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

निर्मल भाव से ही होते है अच्छे कर्म – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी निर्मलभाव को धारण करने वाला ही अच्छे कर्म कर सकता है।

कर्म किसी को छोड़ता नहीं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

कर्म किसी को छोड़ता नहीं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज पद्मपुराण में रावण के जीवन का एक प्रसंग आता है। आप सब जानें

अपनी कुल नगरी वापस पाने के लिये रावण ने की दिग्विजय – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

अपनी कुल नगरी वापस पाने के लिये रावण ने की दिग्विजय – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज पद्मपुराण में एक प्रसंग है जिसमें रावण

कर्मों के खेल निराले – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

कर्मों के खेल निराले – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज महलों में सोने वाला वन-वन भटकता है। संगीत की आवाज सुनकर उठने वाले की

सामने वाला भले ही कमजोर हो पर कर्म बलवान होते हैं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

सामने वाला भले ही कमजोर हो पर कर्म बलवान होते हैं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज कभी किसी को कमजोर समझकर पीड़ा, कष्ट

कर्म के उदय से बदलते हैं मनुष्य के भाव – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

कर्म के उदय से बदलते हैं मनुष्य के भाव – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज पद्मपुराण के पर्व 72 में रावण और सीता