भक्तामर स्तोत्र काव्य – 32

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 32 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 32 संग्रहणी आदि उदर पीडा नाशक गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्वभागस्- त्रैलोक्य-लोक-शुभ-सङ्गम-भूति-दक्षः । सद्धर्म-राज-जय-घोषण-घोषकः सन्, खे दुन्दुभिर्-ध्वनति ते यशसः प्रवादि

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 33

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 33 सर्व ज्वर नाशक मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात संतानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टि रुद्धा । गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसां ततिर्- वा॥33॥ अन्वयार्थ : गन्धोदबिन्दु – सुगन्धित

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 34

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 34 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 34 गर्व रक्षक शुम्भत् प्रभा-वलय-भूरि-विभा विभोस्ते, लोक-त्रये द्युति मतां द्युति -माक्षिपंती । प्रोद्यद् दिवाकर्-निरंतर-भूरि-संख्या, दीप्त्या जयत्यपि

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 35

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 35 काव्य – 35 दुर्भिक्ष चोरी मिरगी आदि निवारक स्वर्गा-पवर्ग-गम मार्ग-विमार्ग -णेष्टः, सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस्-त्रिलोक्याः । दिव्य-ध्वनिर्-भवति ते विशदार्थ-सर्व- भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः ॥35॥ अन्वयार्थ

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36 सम्पत्ति-दायक उन्निद्र-हेम-नव पङ्कज पुञ्ज -कांती, पर्युल्- लसन् – नख -मयूख-शिखाभि-रामौ । पादौ पदानि तव यत्र

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37 दुर्जन वशीकरण इत्थं यथा तव विभूति-रभूज् – जिनेन्द्र, धर्मोप-देशन विधौ न तथा परस्य । यादृक्

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40 अग्नि भय निवारक कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पम्, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्- स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सु – मिव सम्मुख-मापतन्तम्, त्वन्- नामकीर्तन-जलं

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41 सर्प विष निवारक रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलम्, क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् । आक्रामति क्रम- युगेन निरस्त-शङ्कस्- त्वन् –नाम -नाग-दमनी

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42 युद्ध भय निवारक वल्गत् – तुरङ्ग-गज-गर्जित-भीमनाद- माजौबलं बलवता मपि भू-पतीनाम् । उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखाप –विद्धम्, त्वत् कीर्तनात्

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43 युद्ध में रक्षक और विजय दायक कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह- वेगाव -तार-तरणातुर-योध-भीमे । युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्- त्वत् (द्)-पाद-पङ्कज-वना-श्रयिणो