भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44 भयानक-जल-विपत्ति नाशक अम्भो-निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्रम्- पाठीन -पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ । रंगत् तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्- त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजन्ति ॥44॥ अन्वयार्थ: क्षुभित
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45 सर्व भयानक रोग नाशक उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः, शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशाः । त्वत्पाद-पङ्कज-रजोऽमृत दिग्ध-देहाः, मर्त्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्य-रूपाः ॥45॥ अन्वयार्थ: उद्भूत
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 47
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 47 भक्तामर स्तोत्रकाव्य – 47 सर्व भय निवारक मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानला – हि, संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्ध -नोत्थम् । तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव , यस्तावकं स्तव-मिमं
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 48
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 48 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 48 मनोवांछित सिद्धिदायक स्तोत्र-स्त्रजं तव जिनेन्द्र गुणैर्-निबद्धाम् भक्त्या मया विविध-वर्ण-विचित्र-पुष्पाम् । धत्ते जनो य इह कण्ठ-गतामजसं
भाग दो : चंदन के वृक्ष वाले आंगन में जन्मे थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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भाग छः : जीव मात्र के प्रति दया भाव रखते थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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भाग पांच : सातगौड़ा को अपना जीवनदाता मानते थे शूद्र – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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