क्षमा के अभाव में व्यक्ति क्रोध को जगह देता है-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

क्षमा के अभाव में व्यक्ति क्रोध को जगह देता है-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज पहला दिन उत्तम क्षमा धर्म दस लक्षण पर सभी वर्ग के

अहंकार को धरातल पर रखकर जीना ही मार्दव धर्म है-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

अहंकार को धरातल पर रखकर जीना ही मार्दव धर्म है-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज दूसरा दिन उत्तम मार्दव धर्म उल्लासित करने वाले पर्व का आज

संस्कारों के आगाज का काल है दशलक्षण पर्व अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

इस प्रायोगिक पाठशाला में मुनि चर्या के ज्ञान को साकार करते हैं श्रावक उदयपुर -जैन समाज का पर्युषण या दशलक्षण पर्व हर मुनि बनने वाले

मैं राक्षस नहीं… राक्षस वंश का हूँ!

मैं राक्षस नहीं… राक्षस वंश का हूँ! मेरा वंश पापियों का नहीं पुण्यात्माओं का है लेखक- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज पिछली बार मैंने

कहानी श्रवणबेलगोला मठ की – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

कहानी श्रवणबेलगोला मठ की – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज श्रवणबेलगोला मठ कब अस्तित्व में आया, इसके सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलते। 12वीं सदी

मौन… एक साधना!

मौन… एक साधना! सकारात्कता से परिपूर्ण जीवन ऊर्जा है मौन। अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मौन… केवल वाणी से कुछ न कहने का नाम नहीं, मौन तो एक क्रिया है जो

समवशरण ही वह स्थान है जहां मनुष्य,तिर्यंच,और देव,एक साथ बैठकर सुनते हैं भगवान का धर्म उपदेश – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

समवशरण ही वह स्थान है जहां मनुष्य,तिर्यंच,और देव,एक साथ बैठकर सुनते हैं भगवान का धर्म उपदेश – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मैत्री भाव जगत

ऐसे हुई अहिंसा युद्ध की स्थापना- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

ऐसे हुई अहिंसा युद्ध की स्थापना- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर भरत(bharat) चक्रवर्ती जब अपनी छह खण्ड की दिग्विजय कर अयोध्या लौटे तो चक्ररत्न अयोध्या के

“सत्य और साधुत्व के परीक्षा की घड़ी”-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

“सत्य और साधुत्व के परीक्षा की घड़ी”-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज बीते कुछ रोज पहले ही कुछ श्रावकों, संस्थाओं और श्रेष्ठीगणों ने साधुओं के आहार,

‘सूर्यास्त पश्चात भोजन विषाक्त कैसे हो जाता है?’ -अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

‘सूर्यास्त पश्चात भोजन विषाक्त कैसे हो जाता है?’ -अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज भारतीय और जैन संस्कृति में साधना, ध्यान, त्याग और संयम