छहढाला तीसरी ढाल छंद-13

छहढाला तीसरी ढाल छंद-13 तीसरी ढाल वात्सल्य और प्रभावना अंग और मदों का वर्णन धर्मीसों गौ-बच्छ-प्रीतिसम, कर जिन-धर्म दिपावै। इन गुणतैं विपरीत दोष वसु, तिनकों

छहढाला तीसरी ढाल छंद-16

छहढाला तीसरी ढाल छंद-16 तीसरी ढाल सम्यग्दृष्टि मर कर कहाँ -कहाँ पैदा नही होता ? और सम्यक्त्व की महिमा प्रथम नरक बिन षट् भू ज्योतिष,

छहढाला तीसरी ढाल छंद-15

छहढाला तीसरी ढाल छंद-15 तीसरी ढाल सम्यग्दर्शन का महत्व दोषरहित गुणसहित सुधी जे, सम्यक्दरश सजे हैं। चरितमोहवश लेश न संजम, पै सुरनाथ जजे हैं।। गेही

छहढाला तृतीय ढाल सारांश

छहढाला तृतीय ढाल सारांश तृतीय ढाल सारांश आत्मा का हित, सुख है। वह सुख निराकुलता में है और वह निराकुलता मोक्ष में है, इसलिए तृतीय

छहढाला तीसरी ढाल छंद-17

छहढाला तीसरी ढाल छंद-17 तीसरी ढाल सम्यक्त्व के बिना ज्ञान और चारित्र सम्यक् नहीं हैं और अंतिम उपदेश मोक्षमहल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान-चरित्रा।

छहढाला तीसरी ढाल छंद-4

छहढाला तीसरी ढाल छंद-4 छहढाला तीसरी ढाल जीव के भेद, बहिरात्मा और उत्तम अंतरात्मा का लक्षण बहिरातम, अन्तर-आतम, परमातम जीव त्रिधा है। देह जीव को

छहढाला तीसरी ढाल छंद-7

छहढाला तीसरी ढाल छंद-7 छहढाला तीसरी ढाल अजीव, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्य का लक्षण चेतनता बिन सो अजीव हैं, पञ्च भेद ताके हैं। पुद्गल

छहढाला तीसरी ढाल छंद-9

छहढाला तीसरी ढाल छंद-9 छहढाला तीसरी ढाल आस्रव त्याग उपदेश,बन्ध,संवर,निर्जरा का लक्षण ये ही आतम को दु:ख – कारन, तातैं इनको तजिये। जीव-प्रदेश बँधै विधि

छहढाला तीसरी ढाल छंद-10

छहढाला तीसरी ढाल छंद-10 छहढाला तीसरी ढाल मोक्ष का लक्षण, व्यवहार सम्यग्दर्शन सकल-करमतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी। इहिविधि जो सरधा तत्त्वन की, सो

छहढाला चौथी ढाल छंद-1

छहढाला चौथी ढाल छंद-1 चौथी ढाल सम्यग्ज्ञान का लक्षण और समय सम्यक् श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सम्यक्ज्ञान। स्वपर अर्थ बहु धर्म जुत, जो प्रकटावन भान।।1।।