छहढाला दूसरी ढाल छंद-15

छहढाला दूसरी ढाल छंद-15 दूसरी ढाल मिथ्याचारित्र और संसार के त्याग का उपदेश ते सब मिथ्याचारित्र त्याग, अब आतम के हित पन्थ लाग। जगजाल भ्रमण

छहढाला दूसरी ढाल सारांश

छहढाला दूसरी ढाल सारांश   दूसरी ढाल सारांश इस ढाल में चतुर्गति-भ्रमण व दु:खों का निदान, सात तत्त्वों का विपरीत श्रद्धान, कुगुरु-कुदेव-कुधर्म का स्वरूप, गृहीत-अगृहीत

छहढाला दूसरी ढाल छंद 4

छहढाला दूसरी ढाल छंद 4 छहढाला दूसरी ढाल मिथ्यादृष्टि की मान्यताएँ मैं सुखी-दु:खी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव। मेरे सुत-तिय मैं सबल

छहढाला दूसरी ढाल छंद 6

छहढाला दूसरी ढाल छंद 6   छहढाला दूसरी ढाल बंध और संवर तत्त्व का विपरीत श्रद्धान शुभ-अशुभ बंध के फल मँझार, रति-अरति करै निज पद

छहढाला दूसरी ढाल छंद-13

छहढाला दूसरी ढाल छंद-13 छहढाला दूसरी ढाल गृहीत मिथ्याज्ञान का लक्षण एकान्तवाद-दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त। रागी कुमतिन कृत श्रुताभ्यास, सो है कुबोध बहु देन

छहढाला और उसके रचयिता का परिचय

छहढाला और उसके रचयिता का परिचय

छहढाला पहली ढाल छंद 01

छहढाला पहली ढाल छंद 01 तीन भुवन में सार, वीतराग विज्ञानता । शिवस्वरूप शिवकार, नमहुँ त्रियोग सम्हारिकैं॥

छहढाला पहली ढाल छंद 02

छहढाला पहली ढाल छंद 02 पहली ढाल ग्रन्थ रचना का उद्देश्य व जीव की चाह जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहैं दु:खतैं भयवन्त ।

छहढाला पहली ढाल छंद 03

छहढाला पहली ढाल छंद 03 पहली ढाल संसार भ्रमण का कारण ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्याण। मोह-महामद पियो अनादि, भूल

छहढाला पहली ढाल छंद 05

छहढाला पहली ढाल छंद 05 छहढाला पहली ढाल ग्रन्थ रचना का उद्देश्य व जीव की चाह निगोद के दु:ख व निगोद से निकलकर प्राप्त पर्यायें