कैसी भी परिस्थिति हो पर अशुभ वचन नहीं बोलें – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

कैसी भी परिस्थिति हो पर अशुभ वचन नहीं बोलें – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मनुष्य को अशुभ वचन और बिना प्रयोजन नही बोलना चाहिए।

श्रावक को कभी उपकार नहीं भूलना चाहिए – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

श्रावक को कभी उपकार नहीं भूलना चाहिए – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज पद्मपुराण के पर्व इक्यासी में एक प्रसंग है जो बताता  है कि

गृहस्थ दशा में विवेकपूर्वक जीवन – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

गृहस्थ दशा में विवेकपूर्वक जीवन – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज श्रावक के जीवन में अनेक तरह की समस्याएं आती हैं। क्यों? उनका घर, परिवार,

शत्रुघ्न ने निर्वाह किया श्रावक धर्म का – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

शत्रुघ्न ने निर्वाह किया श्रावक धर्म का – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज पद्मपुराण पर्व 89 में लिखा है कि युद्ध से पहले शत्रुघ्न ने

श्रावक को मोह करना ठीक नहीं – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

श्रावक को मोह करना ठीक नहीं – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज श्रावक (धर्मात्मा पुरुष) को किसी भी कार्य में मोह नहीं करना चाहिए। पद्मपुराण

सच्चे गृहस्थधर्म का कर्तव्य – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सच्चे गृहस्थधर्म का कर्तव्य – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज सच्चे श्रावक का मन सदैव धर्म में रहता है। शुभकार्य का संकेत मिलने पर वह

भीतर की बुराई तलाशें – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भीतर की बुराई तलाशें – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज जब अशुभ कर्म प्रकट होते हैं तो जीवन में संकट, दुःख आते हैं। पर उन

श्रावक – श्रावक:-‘पाप कर्म के नाश के लिए दया धर्म जरूरी है’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

श्रावक – श्रावक:-‘पाप कर्म के नाश के लिए दया धर्म जरूरी है’- अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज संसार में दुःख के कारण हैं

राम ने निभाया श्रावक धर्म – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

राम ने निभाया श्रावक धर्म – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज सीता ने जिस प्रकार दान की इच्छा जताई थी, उसी प्रकर दिया गया। लक्ष्मण

कर्म सिद्धांत की पालना जरूरी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

कर्म सिद्धांत की पालना जरूरी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज रावण के दाह संस्कार के बाद विभीषण में अपने कुल के बड़े