भाग तैंतालीस : आचार्य शांतिसागर हर उपसर्ग को ऐसे सहन करते थे, जैसे यह शरीर ही उनका नहीं
भाग तैंतालीस : आचार्य शांतिसागर हर उपसर्ग को ऐसे सहन करते थे, जैसे यह शरीर ही उनका नहीं एक बार आचार्य शांतिसागर महाराज दमोह पहुंचे।
भाग छियालीस : अपनी प्रशंसा सुनकर राई के बराबर भी आनंद नहीं मिलता था आचार्य शांतिसागर महाराज को
एक बार फलटण में हीरक जयंती के समारंभ में अनेक धनकुबेरों का आगमन हुआ। उस समय आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने वहां आए श्रीमंतों से
भाग पैंतालीस : आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की हर चेष्टा प्रदान करती थी संयम की प्रेरणा
भाग पैंतालीस : आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की हर चेष्टा प्रदान करती थी संयम की प्रेरणा एक बार कुंथलगिरि में आचार्य शांतिसागर महाराज के छोटे
भाग उन्चास : जैन धर्म में नहीं है निरपराधी जीव की हिंसा – आचार्य शांतिसागर महाराज
भाग उन्चास : जैन धर्म में नहीं है निरपराधी जीव की हिंसा – आचार्य शांतिसागर महाराज आचार्य शांतिसागर महाराज कहते थे कि हिंसा करना महापाप
भाग सैंतालीस : व्रती जीव ही देवगति में जाता है, इसलिए करें पापों का त्याग-आचार्य शांतिसागर महाराज
भाग सैंतालीस : व्रती जीव ही देवगति में जाता है, इसलिए करें पापों का त्याग-आचार्य शांतिसागर महाराज आचार्य शांतिसागर महाराज कहते थे कि जिन भगवान
भाग पचास : जितना चाहे करो धर्म का पालन, लेकिन करो अच्छी तरह से-आचार्य शांतिसागर महाराज
आचार्य शांतिसागर महाराज कहते थे कि आज के युग में सभी कहते हैं कि धर्म का पालन कठिन है, इसे निभाने में बड़ी तकलीफों और
शांति कथा – भाग अडतालीस : जिनेंद्र भगवान की वाणी में विश्वास न होने से ही मिलती है विफलता-आचार्य शांतिसागर महाराज
शांति कथा – भाग अडतालीस : जिनेंद्र भगवान की वाणी में विश्वास न होने से ही मिलती है विफलता-आचार्य शांतिसागर महाराज आचार्य शांतिसागर महाराज कहते
शांति कथा – भाग अठारह : सहभोजन आदि से आत्मा का उत्थान मानना भ्रम मानते थे आचार्य शांतिसागर जी – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
शांति कथा – भाग अठारह : सहभोजन आदि से आत्मा का उत्थान मानना भ्रम मानते थे आचार्य शांतिसागर जी – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
शांति कथा – भाग सोलह : दूसरों की अंतर्वेदना दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
शांति कथा – भाग सोलह : दूसरों की अंतर्वेदना दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज सातगौड़ा
स्वाध्याय – 13 : सात प्रकार के केवली
स्वाध्याय – 13 : सात प्रकार के केवली 1 तीर्थंकर केवली : 2,3 एवं 5 कल्याणक वाले केवली । 2 सामान्य केवली : कल्याणकों से रहित केवली
