स्वाध्याय – 14 : ज्ञानाराधना के आठ दोष
स्वाध्याय – 14 : ज्ञानाराधना के आठ दोष 1.स्वाध्याय के समय का ध्यान न रखना पहला दोष है । 2.शुद्ध उच्चारण न करना,अक्षरादिक को छोड़
स्वाध्याय – 15 : सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के बाह्य कारण
स्वाध्याय – 15 : सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के बाह्य कारण नरकगति में – जाति स्मरण, धर्मश्रवण ,वेदना अनुभव (तीसरी पृथ्वी तक) और उसके बाद चौथी पृथ्वी
स्वाध्याय-17 : स्वाध्याय के पांच भेद
स्वाध्याय-17 : स्वाध्याय के पांच भेद • आलस्य का त्यागकर ज्ञान की आराधना करना निश्चय स्वाध्याय है। • व्यवहार में स्वाध्याय के पांच भेद हैं
स्वाध्याय – 19 : आहार दान ऐसे करना चाहिए
स्वाध्याय – 19 : आहार दान ऐसे करना चाहिए नवपुण्यैः प्रतिपत्तिः सप्तगुण समाहितेन शुद्धेन । अपसूनारम्भाणा मार्याणामिषयते दानम् ।। 113।। (रत्नकरण श्रावकाचार) पाँचसूनरूप पापकार्यों से
स्वाध्याय – 18 : तीर्थंकर विशेष
स्वाध्याय – 18 : तीर्थंकर विशेष • कलश : तीर्थंकर भगवान के जन्म अभिषेक के कलश का मुख एक योजन (12 किलोमीटर), उदर में चार योजन और
स्वाध्याय : 20 – शरीर विशेष
स्वाध्याय : 20 – शरीर विशेष शरीर के पांच भेद है । 1. औदारिक शरीर 2. वैक्रियिक शरीर 3. आहारक शरीर 4. तेजस शरीर 5.
स्वाध्याय : 22 दर्शन,ज्ञान और चारित्र के पहले सम्यक् विशेषण क्यों लगता है ।
स्वाध्याय : 22 दर्शन,ज्ञान और चारित्र के पहले सम्यक् विशेषण क्यों लगता है । आप सब देखते है कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र के पहले
स्वाध्याय : 23 सम्यग्दर्शन विशेष – 1
स्वाध्याय : 23 सम्यग्दर्शन विशेष – 1 सम्यग्दर्शन के कई भेद अलग-अलग शास्त्रों में बताए हैं। भेदों के नाम अलग-अलग है पर सब का अर्थ,भाव
स्वाध्याय : 24 सम्यकदर्शन विशेष-2
स्वाध्याय : 24 सम्यकदर्शन विशेष-2 राजवार्तिक और यशस्तिलक चम्पूगत में दस प्रकार का सम्यकदर्शन भी होता है । तो आओ जानते हैं । आज्ञा सम्यकदर्शन – वीतराग
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 3
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 3 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 3 सर्वसिद्धिदायक बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ, स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्
