भीलूडा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागरजी महाराज ने श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में शनिवार को आयोजित धर्म सभा में प्रवचन करते हुए कहा कि जो अंदर से सुख का अनुभव करता है, वह कभी किसी से नहीं घबराता।
मुनिश्री ने कहा कि मेरी भावना पाठ मंे कहा गया है कि सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी ना घबरावे, यानी हम यही कामना करें कि जगत सब जीव सुखी रहें और किसी को किसी तरह की घबराहट ना हो। जिसे सुख चाहिए, उसे घबराहट छोड देनी चाहिए। घबराहट होती है तो गलती हो ही जाती है। घबराहट दुख का कारण हो सकता है, क्योंकि इसमें हमारी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। घबराहट में खाना भी खाओगे तो स्वाद नहीं लगेगा। घबराहट में कुछ भी हो सकता है। घबराहट में ना आदमी धन देखता है ना शर्म देखता है। घबराहट में व्यक्ति के अंदर से दया और करूणा निकल जाती है। इसे शास्त्र में अति संक्लेश भाव कहा गया है। घबराहट आदमी को धर्म नहीं करने देती। वो सोचता है मैं पुण्य कर रहा हूं, लेकिन पुण्य तो नहीं कर रहा होता है। ऐसे समय मंें हम दूसरों से जबर्दस्ती का वैर बांध लेते हैं। वैर की परिणिति पाप में होती है और पाप के कारण अभिमान कर लेते हैं। इन सबको छोड कर सबके मंगल की कामना करें। दूसरे के मंगल की सोचोगे तो दूसरे का मंगल तो होगा ही आपके आपके कर्म की निर्जरा भी होगी।
मुनिश्री ने कहा कि हम बाहर से खुश दिखाई देते हैं, लेकिन अंदर से दुखी रहते है। या कभी बाहर से दुखी दिखाई देते हैं और अंदर से खुश होते है। इसे मायाचारी कहा गया है। उपर कुछ अंदर कुछ हो तो उससे पाप का बंध होता है। मायाचारी तियंर्च गति का कारण है।सब तरह के लोग मिलेंगे लेकिन जो अंदर बाहर एक जैसा हो, ऐसे कम होते हैं।

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