रक्षा बन्ध पर्व क्यों

पूर्व वैर भाव के कारण दिगम्बर जैन 700 मुनियों के चारों ओर आग लगाकर उसमें जानवरों को जलाया जा रहा था, इस उपसर्ग को ऋद्धि धारी मुनि विष्णु मुनिराज ने अपनी ऋद्धि के प्रभाव से 700 मुनियों को उस आग से निकाला। इस अग्नि के धुएं से मुनियों का गला घराब हो गया, तब जैन श्रावकों द्वारा खीर का आहार दिया गया। मुनिराज 700 थे, पर मुनियों को आहार करवाने वाले श्रावक 700 से अधिक थे जिन्होंने चौका लगा था। जिन श्रावकों के यहां मुनि का आहार हो गया था, श्रावकों ने वात्सल्य  वशीभूत होकर आहार करवाया और उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा कि वह धर्म और धर्मात्मा की रक्षा करेंगे। तभी से रक्षाबंधन पर्व प्रारम्भ हुआ।

इन्हें मिला लाभ
इन्द्र बनने का लाभ हितेश अमृतलाल शाह,अशोक टुकावत,ओमप्रकाश शाह को यज्ञनायक, लौंग से जाप कमलेश नाथूलाल, शांतिधारा भावेश चांदमल, मंयक दोषी, निर्वाण लड्डू रमणलाल टुकावत, जयंतिलाल जैन, कनकमल जैन और नैवेद्य चढ़ाने का लाभ भावना जैन को प्राप्त हुआ। 700 मुनियों को अर्घ्य हितेश अमृतलाल शाह, अशोक टुकावत, सुभाष शाह, हितेश मणिलाल, कमल प्रकाश जैन, कमलेश जैन, जयवंत जैन,कनकमल जैन, हेमन्त जैन, सुशांत जैन,संजय जैन,रमणलाल जैन प्रवीण ललिल जैन, तुष्टि जैन ने चढ़ाए। भक्तामर विधान में मुख्य पूजन रमणलाल टुकावत ने किया।

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