दूसरा दिन : शरीर का परिवर्तन होता है, यह सोच मृत्यु के भय को कर देगी दूर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

दूसरा दिन : शरीर का परिवर्तन होता है, यह सोच मृत्यु के भय को कर देगी दूर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मौन साधना

तीसरा दिन : प्रतिकार से तो बढ़ता है संक्लेश – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

तीसरा दिन : प्रतिकार से तो बढ़ता है संक्लेश – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मौन साधना के तीसरे दिन उपवास कर अन्तर्मुखी मुनि पूज्य

चौथा दिन : अपने दोषों को स्वीकार करना ही सबसे बड़ा आत्मधर्म – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

चौथा दिन : अपने दोषों को स्वीकार करना ही सबसे बड़ा आत्मधर्म – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज भीलूड़ा में

पांचवा दिन : दोषों से बचने पर ही जीवन सुखद और शांतिमय – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

पांचवा दिन : दोषों से बचने पर ही जीवन सुखद और शांतिमय – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मौन साधना का पांचवा दिन। सोचते-सोचते समय

छठवां दिन : अप्रेक्षा न रखें तो ही बेहतर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

छठवां दिन : अप्रेक्षा न रखें तो ही बेहतर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज दुःखों से बचने के लिए अप्रेक्षा नहीं रखनी चाहिए, आज

सातवां दिन : स्व-कल्याण के लिए है मेरा चिंतन, इसे पर-कल्याण समझना मेरी भूल – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातवां दिन : स्व-कल्याण के लिए है मेरा चिंतन, इसे पर-कल्याण समझना मेरी भूल – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मेरी मौन साधना का सातवां

नौवां दिन : इंसान खुद कर्म का जाल बुनता है और उसी में फंस जाता है – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

नौवां दिन : इंसान खुद कर्म का जाल बुनता है और उसी में फंस जाता है – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मुनि पूज्य सागर

दसवाँ दिन : गलतियां स्वीकारना पाप नहीं प्रायश्चित है – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

दसवाँ दिन : गलतियां स्वीकारना पाप नहीं प्रायश्चित है – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मुनि पूज्य सागर की डायरी से आज मेरी मौन साधना

ग्यारहवां दिन : संत और प्रभु जगत के होते है और जगत उनका – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

ग्यारहवां दिन : संत और प्रभु जगत के होते है और जगत उनका – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज मुनि पूज्य सागर की डायरी से