आपदाएं इंसान को मजबूत बनाती है

अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

प्राणी मात्र के जीवन में दु:ख, संकट और आपदा अचानक बिना कहे ही आती है। यह संकट शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आगंतुक चार रूप से आते हैं। सवाल यह है कि इनसे कैसे बचा जाए या यह जीवन में आए ही नहीं, जिससे हमारे मन के भाव खराब न हो। मन के भावों का खराब होना ही आपदा आने का मुख्य कारण है। एक सच यह भी है कि हमारे अन्दर धर्म का अस्तित्व तब तक ही है, जब तक हम दु:ख का अनुभव करते हैं। एक सत्य यह भी कि जो अचानक आपदा हम पर आती है उसका करण भी हम स्वयं ही हैं। ऐसा स्वीकार किए बिना अचानक आई आपदाओं से बचा भी नहीं जा सकता है।

धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो अचानक आपदा आने का कारण मनुष्य का अपना कर्म ही है। लौकिक दृष्टि से देखें तो हम किसी के साथ बुरा व्यवहार करते हैं तो हमारे साथ भी बुरा ही व्यवहार होगा या हमारी बात पर कोई ध्यान नहीं देगा। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो जिस व्यक्ति के अन्दर जितनी कषाय या संक्लेश भाव होगा, वह व्यक्ति उतना बीमार रहेगा, जिसका उसके जीवन मेें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आगंतुक दुखों के रूप में रहेगा। हिंसा के भाव क्रोध के कारण व्यक्ति के अन्दर आते हैं। घमण्ड के भाव मान कषाय के कारण उसमें आते हैं। मन खराब मायाचारी के कारण होता है। दिमाग लोभ कषाय के कारण काम करना बन्द कर देता है। वैज्ञानिक निष्कर्ष के अनुसार ऐसे व्यक्तियों को मानसिक रोगी कहा जाता है। जो अपने आप कुछ नहीं सोच कर, जिसके संपर्क मे आता है, उसी प्रकार की बात, व्यवहार एवं कार्य करता है। एसे व्यक्ति अपनी सोच की शक्ति धीरे धीरे खत्म कर देते हैं। इसी कारण वह अचानक आई आपदा, संकट और दुखों से निकलने का रास्ता खोज नहीं पाता है।

आपदा आने के कारण

व्यक्ति की संकुचित सोच, अहंकार का भाव, पुरुषार्थ की कमी व्यक्ति के अन्दर ईष्र्या पैदा कर देती है। समय से पहले और उम्र से अधिक सोचना, अनुभवी एवं बड़ों की बात की अनदेखी करना, हमउम्र या अपने से छोटों की सलाह लेना, अपनी आत्मशक्ति को छिपाना और कामयाब होने पर सुख और ना कामयाबी पर दुख का अनुभव करना, क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, अहंकार, ईष्र्या, दुर्भावना, प्राणियों के प्रति शत्रु का भाव, अनुभव की कमी अचानक आपदा आने मे निमित्त बनते है। इस स्थिति में आपदा से बचने का रास्ता भी नहीं दिखाई देता है। रावण को अपनी शक्ति पर अहंकार था तो वह मरण को प्राप्त हुआ और आज तक उसे व्यक्ति बुरा को कहते हैं। राम ने अपनी शक्ति का उपयोग जन कल्याण और अधर्म का नाश करने को किया तो वह मोक्ष को प्राप्त हुए। आज भी उनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

आपदा आने पर क्या सोचें

अचानक जो आपदा अभी आई है, यह मेरे कर्मों का फल है। यह आपदा मुझे यह अनुभव देकर जा रही है कि जीवन मे कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए। जिसका बुरा होता है, उसको ही उसके दु:ख का अनुभव होता है। एक जीव दूसरे जीव का अच्छा-बुरा नहीं कर सकता है। जीवन किसी के कहने से सुखी अथवा दुखी नहीं हो सकता है। हमें अपना जीवन जैसा बनाना है, वह वैसा बन सकता है। मुझे ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे जीवन में कभी आपदा नहीं आए। बुरा सोचने से वर्तमान और भविष्य का जीवन खराब हो जाता है। भविष्य में बुरा नहीं हो, उसके बारे में सोचने से आने वाले समय में व्यक्ति सुखी होगा। अपने पर आई आपदा के बारे में सोचेगा तो मन संक्लेश से भर जाएगा, जिससे अशुभ कर्म का बन्ध होगा। शांत भाव से सहन करने पर आपदा से निकले का रास्ता दिखाई देगा।

अचानक अपदा से कैसे बचे

किसी भी कार्य को करने से पहले उससे होने वाले लाभ और हानि पर विचार करने से हमें सही मार्गदर्शन मिलता है। इससे हम भविष्य के जीवन के बारे में सोच सकते है कि हमारा आने वाला कल कैसा होगा । वर्तमान में हम जैसा कार्य करेंगे, उसी पर आपदा या खुशी आधारित है । जो कार्य हम करने जा रहे हैं, उसमें एक-दूसरे के प्रति मैत्री भाव रहेगा या नहीं। भविष्य में राग-द्वेष के भाव तो पैदा नहीं होंगे। हमारे द्वारा सम्पादित कार्य से धार्मिक, सामाजिक, लौकिक और आर्थिक बातों पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा। ऐसे विचार करने पर ही हम अचानक आने वाली आपदा से बच सकते हैं। प्राणी मात्र के प्रति मैत्री का भाव, दुखी के प्रति करुणा तथा समस्त प्राणियों के प्रति समता का भाव सदैव मन में रखें।

धरातल पर सोचें

मनुष्य अपने जीवन को लेकर कल्पना की उड़ान भरता रहता है। जीवन को स्वप्न की तरह सोचता है, जबकि आवश्यकता धरातल पर सोचने की है। उम्र से अधिक कार्य के सपनों को देखना भी आपदा का कारण बनते हैं। कम उम में व्यक्ति अपने सारी जिन्दगी जीने के सपने देख लेता है। शिक्षा के शैशवकाल में वह व्यापार और नौकरी के सपने देख लेता है। शिक्षा ग्रहण करने की आयु में वह प्यार कर लेता है। विवाह पूर्व ही वह अपनी संतान, उनके नामकरण आदि पर विचार कर लेता है। जब किसी कारण वह स्वप्न पूर्ण नहीं होते तो व्यक्ति को स्वयं से घृणा होने लगती है। वह अपने आप को आपदा, संकट मे डाल देता है। स्वयं को समाप्त करने की सोच लेता है। स्वप्न पूर्ण करने के लिए कुसंगति कर लेता है, जिसके कारण वह आपदाओं से घिर जाता है।

आपदा के समय शक्तिहीन क्यों हो जाता है

वास्तव में देखा जाए तो राग-द्वेष के कारण ही जीवन में अचानक आपदाएं आती हैं। इन्हीं के कारण भाव और विचार दोनों खराब और अच्छे होते हैं। जो वस्तु पसन्द थी वह चली गई तो राग के कारण दुखी। जो वस्तु पसन्द नहीं, वह मिल गई तो द्वेष के कारण व्यक्ति दुखी होता है । दुख से संक्लेश भाव उत्पन्न होता है, जो हमारी विचार शक्ति को बन्द कर देता है। अचानक आई आपदा में व्यक्ति नकारात्मक बातें सोचता है तो वह स्वयं को शक्तिहीन ही समझता है। आध्यत्म ज्ञान और अनुभव का नहीं होना, संत की संगति का अभाव, आध्यत्म, शास्त्रों को नहीं पढऩा नकारात्मक सोच का कारण है। सकारात्मक सोच धर्म या आध्यात्म और संत से ही मिलती है। आध्यात्मिक शक्ति ही आपदा के समय सही विचारों को जन्म देती है और आपदा से मुक्ति पाने का मार्ग सूझता है। जिस व्यक्ति के पास स्वयं के बारे में सोचने के बारे में कुछ नहीं है, वह स्वत: ही शक्तिहीन हो जाता है।

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