भक्तामर स्तोत्र काव्य – 35
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 35 काव्य – 35 दुर्भिक्ष चोरी मिरगी आदि निवारक स्वर्गा-पवर्ग-गम मार्ग-विमार्ग -णेष्टः, सद्धर्म-तत्त्व-कथनैक-पटुस्-त्रिलोक्याः । दिव्य-ध्वनिर्-भवति ते विशदार्थ-सर्व- भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः प्रयोज्यः ॥35॥ अन्वयार्थ
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 36 सम्पत्ति-दायक उन्निद्र-हेम-नव पङ्कज पुञ्ज -कांती, पर्युल्- लसन् – नख -मयूख-शिखाभि-रामौ । पादौ पदानि तव यत्र
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 37 दुर्जन वशीकरण इत्थं यथा तव विभूति-रभूज् – जिनेन्द्र, धर्मोप-देशन विधौ न तथा परस्य । यादृक्
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 40 अग्नि भय निवारक कल्पांत-काल-पवनोद्धत-वह्नि-कल्पम्, दावानलं ज्वलित-मुज्ज्वल-मुत्- स्फुलिङ्गम् । विश्वं जिघत्सु – मिव सम्मुख-मापतन्तम्, त्वन्- नामकीर्तन-जलं
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 41 सर्प विष निवारक रक्तेक्षणं समद-कोकिल-कण्ठ-नीलम्, क्रोधोद्धतं फणिन-मुत्फण-मापतन्तम् । आक्रामति क्रम- युगेन निरस्त-शङ्कस्- त्वन् –नाम -नाग-दमनी
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 42 युद्ध भय निवारक वल्गत् – तुरङ्ग-गज-गर्जित-भीमनाद- माजौबलं बलवता मपि भू-पतीनाम् । उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखाप –विद्धम्, त्वत् कीर्तनात्
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 43 युद्ध में रक्षक और विजय दायक कुन्ताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह- वेगाव -तार-तरणातुर-योध-भीमे । युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्- त्वत् (द्)-पाद-पङ्कज-वना-श्रयिणो
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 44 भयानक-जल-विपत्ति नाशक अम्भो-निधौ क्षुभित-भीषण-नक्र-चक्रम्- पाठीन -पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ । रंगत् तरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रास्- त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद्-व्रजन्ति ॥44॥ अन्वयार्थ: क्षुभित
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45 भक्तामर स्तोत्र काव्य – 45 सर्व भयानक रोग नाशक उद्भूत-भीषण-जलोदर-भार-भुग्नाः, शोच्यां दशा-मुपगताश्-च्युत-जीविताशाः । त्वत्पाद-पङ्कज-रजोऽमृत दिग्ध-देहाः, मर्त्या भवन्ति मकर-ध्वज-तुल्य-रूपाः ॥45॥ अन्वयार्थ: उद्भूत
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 47
भक्तामर स्तोत्र काव्य – 47 भक्तामर स्तोत्रकाव्य – 47 सर्व भय निवारक मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानला – हि, संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्ध -नोत्थम् । तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव , यस्तावकं स्तव-मिमं
