भाग बतीस : अनेकों बार सर्प के लिपटने पर भी बिना घबराए ध्यान में ही रहे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग बतीस : अनेकों बार सर्प के लिपटने पर भी बिना घबराए ध्यान में ही रहे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग तैंतीस : दुष्टों पर भी अमृत वर्षा करते थे आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग तैंतीस : दुष्टों पर भी अमृत वर्षा करते थे आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज बात लगभग वर्ष 1930 की

भाग चौंतीस : आचार्य श्री के प्रभाव से व्यसनी व्यक्ति ने छोड़े सारे कुकर्म और बन गया मुनि – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग चौंतीस : आचार्य श्री के प्रभाव से व्यसनी व्यक्ति ने छोड़े सारे कुकर्म और बन गया मुनि – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज एक

भाग पैंतीस : आचार्य श्री शांतिसागर की जिन साधना के फल से गूंगा लगा था बोलने – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग पैंतीस : आचार्य श्री शांतिसागर की जिन साधना के फल से गूंगा लगा था बोलने – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज बात कोल्हापुर के

भाग छत्तीस : हजारों चीटियां चढ़ी शरीर पर लेकिन नहीं टूटा था आचार्य श्री का ध्यान – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग छत्तीस : हजारों चीटियां चढ़ी शरीर पर लेकिन नहीं टूटा था आचार्य श्री का ध्यान – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज एक बार आचार्य

भाग सैंतीस : आत्मध्यान में इंद्रीय सुख नहीं, वहां तो है केवल आत्मा का आनंद-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग सैंतीस : आत्मध्यान में इंद्रीय सुख नहीं, वहां तो है केवल आत्मा का आनंद-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज आचार्य श्री

भाग अढतीस : उपवास या अल्प आहार से प्रमाद कम होकर बढ़ती है विचार-शक्ति-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

भाग अढतीस : उपवास या अल्प आहार से प्रमाद कम होकर बढ़ती है विचार-शक्ति-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज आचार्य श्री शांतिसागर

भाग उनतालीस : सम्यक्त्व की महिमा इतनी अधिक है कि उससे प्राप्त किया जा सकता है मोक्ष – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज

भाग उनतालीस : सम्यक्त्व की महिमा इतनी अधिक है कि उससे प्राप्त किया जा सकता है मोक्ष – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज आचार्य श्री शांतिसागर

भाग चालीस : निश्चय रूपी फल बढ़ने से हो जाता है व्यवहार रूपी फूल संकुचित – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज

भाग चालीस : निश्चय रूपी फल बढ़ने से हो जाता है व्यवहार रूपी फूल संकुचित – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने

भाग इकतालीस : सात व्यसनों और पांच पापों को छोड़कर राजा को करना चाहिए शासन-आचार्य शांतिसागर महाराज

भाग इकतालीस : सात व्यसनों और पांच पापों को छोड़कर राजा को करना चाहिए शासन-आचार्य शांतिसागर महाराज एक बार सांगली राज्य के अधिपति श्रीमंत राजा