भाग बयालीस : केशलोंच आत्मविकास का कारण, इससे होती है जिनधर्म की प्रभावना-आचार्य शांतिसागर महाराज

भाग बयालीस : केशलोंच आत्मविकास का कारण, इससे होती है जिनधर्म की प्रभावना-आचार्य शांतिसागर महाराज एक बार आचार्य शांतिसागर महाराज से किसी ने पूछा कि

स्वाध्याय – 1 : ‘सूर्यास्त पश्चात भोजन विषाक्त कैसे हो जाता है?’ -अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

स्वाध्याय – 1 : ‘सूर्यास्त पश्चात भोजन विषाक्त कैसे हो जाता है?’ -अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज भारतीय और जैन संस्कृति में साधना,

स्वाध्याय – 2 : चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्न- प्रस्तुति अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

स्वाध्याय – 2 : चंद्रगुप्त के सोलह स्वप्न- प्रस्तुति अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर    डूबते हुए सूर्य का दर्शन– यह इस बात का संकेत है

स्वाध्याय – 4 : वास्तु शास्त्र

स्वाध्याय – 4 : वास्तु शास्त्र आदिकाल से ही हमारे पूर्वज वास्तु के अनुसार भवनों को निर्माण करते रहे हैं। हमारे देश में जितनी भी

स्वाध्याय – 3 : तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न-प्रस्तुति -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

स्वाध्याय – 3 : तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्न-प्रस्तुति -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर तीर्थंकर के गर्भ में आने से पहले उनकी माता सोलह स्वप्न

स्वाध्याय – 6 : अरिहंत परमेष्ठी के केवलज्ञान के 10 अतिशय

स्वाध्याय – 6 : अरिहंत परमेष्ठी के केवलज्ञान के 10 अतिशय 1. भगवान् के चारों ओर सौ-सौ योजन (चार कोस का एक योजन,एक कोस में

स्वाध्याय – 5 : अरिहंत परमेष्ठी के जन्म के 10 अतिशय

स्वाध्याय – 5 : अरिहंत परमेष्ठी के जन्म के 10 अतिशय 1. अतिशय सुन्दर शरीर, 2. अत्यन्त सुगंधित शरीर, 3. पसीना रहित शरीर, 4. मल-मूत्र

स्वाध्याय – 8 : अष्ट प्रातिहार्य

स्वाध्याय – 8 : अष्ट प्रातिहार्य देवों के द्वारा रचित अशोक वृक्ष आदि को प्रातिहार्य कहते हैं। वे आठ होते हैं-1. अशोक वृक्ष, 2. तीन

स्वाध्याय – 7 : अरिहंत परमेष्ठी के देवकृत 14 अतिशय

स्वाध्याय – 7 : अरिहंत परमेष्ठी के देवकृत 14 अतिशय 1. अर्धमागधी भाषा-भगवान् की अमृतमयी वाणी सब जीवों के लिए कल्याणकारी होती है तथा मागध

स्वाध्याय – 9 : ऐरावत हाथी का वर्णन

स्वाध्याय – 9 : ऐरावत हाथी का वर्णन ऐरावत हाथी एक लाख योजन विस्तार वाला होता है। एक ऐरावत हाथी के 32 मुख होते हैं।