04
Jun
पद्मपुराण पर्व 85- 86 का प्रसंग है। भरत ने पूर्व भव का वर्णन सुनकर दीक्षा ले ली। उस समय जो चिन्तन भरत ने किया, वह हम सब के चिन्तनयोग्य है।
राम-लक्ष्मण-भरत आदि जब देशभूषण कुलभूषण मुनिराज के दर्शन करने गए, उस समय भरत ने मुनिराज से अपने पूर्व भव के चन्दोदय, कुलंकर, सिंह ,खरगोश, हिरण, मेढक आदि भव को धारण करने वाली बात सुनी। भरत ने मुनिराज से कहा, हे भगवन, मैं संकटपूर्ण हजारों योनियों में चिरकाल से भ्रमण करता हुआ मार्ग के महाश्रम से खिन्न हो चुका हूं। अतः मुझे मोक्ष का कारण जो तपश्चरण है, वह दीजिए। हे भगवन, मैं जन्म-मरण रूपी लहरों से युक्त संसाररूपी नदी में चिरकाल से बहता चला आ रहा हूं, सो आप मुझे हाथ का सहारा दीजिए। यह कहकर भरत समस्त परिग्रह का त्यागकर बैठ गए और स्थिर हो गए। उन्होंने अपने हाथ से केशलोंच कर डाले। इस प्रकार परम् सम्यक्त्व को पाकर महाव्रत धारण करने वाले भरत तत्क्षण में दीक्षित हो उत्कृष्ट मुनि हो गए। भरत मुनि ध्यान करते -करते निर्वाण को प्राप्त कर गए। भरत के साथ हजारों अन्य लोगों ने भी दीक्षाधारण की थी।
अनंत सागर
अंतर्भाव
4 जून 2021, शुक्रवार
भीलूड़ा (राज.)
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