अपने आप को आत्म चिंतन में लगाना चाहिए – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

यस्य स्वयं स्वाभावाप्ति, रभावे कृत्स्नकर्मण: तस्मै संज्ञान रूपाय नमोस्तु परमात्मने अर्थ जिनको सम्पूर्ण कर्मों के अभाव होने पर स्वयं ही स्वभाव की प्राप्ति हो गई है, उस सम्यग्ज्ञान परमात्मा को नमस्कार हो। आज से साप्ताहिक अंतर्मुखी पाठशाला अंतर्भाव हम शुरू कर रहे हैं, जहां आप को आध्यात्मिक ज्ञान सुनने और पढ़ने को मिलेगा संसा संसार में जो आत्मा दुख का अनुभव कर रही है, वह शरीर के निमित्त से कर रही है।आत्मा कर्म रहित है और शरीर की रचना कर्मों से होती है। आत्म चिन्तन से शरीर और आत्मा अलग-अलग हो जाते हैं।तुम अभी जितने दुखों का अनुभव कर रहे हो, उसका कारण है कि तुमने शरीर को अपना मान लिया है।शरीर को पराया मानकर सांसारिक क्रिया करने वाला ही आत्मा को समझ सकता है।जो शरीर को धर्म का साधन मान कर इस्तेमाल करता है, वह दुख में भी सुख का अनुभव कर लेता है। शरीर की रचना  ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अंतराय आठ कर्म द्रव्य कर्म के अलावा राग-द्वेष भाव, कर्म और आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्चास, भाषा, मन यह पर्याप्त औदारिक, आहारक, तेजस और कार्माण शरीर, इन नव कर्म से हुई है। इन सब कर्मों ने आत्मा को परतंत्र कर दिया है।आत्मा को स्वतंत्र करने के लिये संस्कारों और अनुभव के साथ आत्म ध्यान करने की आवश्यकता है।हर क्षण के सुख और दुख में सुखी और दुखी होने की बजाए अपने आपको आत्म चिन्तन में लगाए रखना होगा।आत्म चिंतन परिग्रह के साथ नहीं हो सकता है ।पुण्य से धन, वैभव प्राप्त होता है तो उसका उपयोग भरत चक्रवर्ती की तरह करना होगा।जैसे भरत के पास 6 खण्ड का राज्य था लेकिन उन्होंने इसे अपना कभी नहीं माना।भरत को दीक्षा लेते ही अन्तर्मूहुर्त में केवलज्ञान प्राप्त हो गया था। यही आत्मिक सुख, शाश्वत सुख है। इसी की प्राप्ति के धर्म-कर्म करते हैं।इसी आत्मा की आज पूजा हो रही है, नमस्कार हो रहा है। यही आत्मा तुम्हारे अन्दर है।उसे प्राप्त करने के लिए तुम्हें अपने आप को अकेला समझना होगा।

विश्वास एक मज़बूत नींव – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

दुनिया में जितने व्यक्ति है उनके अंदर विश्वास, आत्मविश्वास और अंधविश्वास ने हर व्यक्तित्व सामर्थ्यानुसार जगह बना रखी है। मानव जीवन इन्हीं विश्वास के प्रकारों

आध्यात्म ही सफल जीवन का आधार है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

अज्ञानता से अधर्म का जन्म होता है। इस अधर्मिता का एक स्वरूप आत्महत्या भी है। आजकल आत्महत्या एक जघन्य अपराध न होकर, हर आम या

साधना ही ज्ञान का मार्ग है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

वास्तव में आत्मज्ञानि कौन होता है? इस बात को एक कहानी से समझते हैं। एक गुरु के दो शिष्य थे। एक का नाम विनीत था

संस्कारों ने मोहनदास को बनाया महात्मा – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

मैं जैन नही हूं पर जैन धर्म के सिद्धांतों को मानने वाला और उन पर चलने वाला व्यक्ति हूँ। मैं सत्य में विश्वास रखता हूँ।

धर्म का फल जब भी मिलेगा शुभ ही मिलेगा – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

हम रास्ते से निकलें और हमें एक कसाई दिखाई दे जिसके हाथ में चाकू हो और एक पंडित दिखाई दे उसके हाथ में भी चाकू

कर्म फल कभी ना कभी मिलता ही है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

हम सब का एक ही सपना, इच्छा, आकांक्षा होती है कि सब मनुष्य आकर सम्मान के साथ ,मधुर वचनों के साथ, चेहरे पर मुस्कान के

रावण… लेकिन मेरा पछतावा मेरी अच्छाई का प्रमाण! – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

मैनें सीता का हरण तो किया पर उसका भोग नहीं किया, क्योंकि वह मुझे नहीं चाहती थी। वह मेरे अपने महल में थी तो भी

दृष्टि बदलो, पूरी दुनिया तुम्हारी मित्र हो जाएगी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

संसार सुख -दुःख का मेला है। प्राणी को इस संसार रूपी मेले में सुख और दुख दोनों के साधन मिलते है। किस साधन को किस

अध्यात्म से सच्चा मित्र दुनिया में नहीं है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

जब आप हवाई जहाज की यात्रा करते हैं तो वहां पर कहा जाता है कि हवा के दबाव के कारण ऑक्सीजन की आवश्यकता होगी तो