शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए आत्मा और शरीर का अलग होना जरूरी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

हम धर्मगुरुओं से सुनते और शास्त्रों में पढ़ते आ रहे है कि शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं। अशुभ कर्मो से दोनों एकमेक हो गए हैं।

ये चार भाव देंगे मानसिक और आत्मिक शांति – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

मनुष्य आत्मिक शांति चाहता है। इसके लिए मन का शान्त होना अत्यंत आवश्यक है। मन की शांति के लिए मनुष्य के जीवन में अच्छे भाव

आत्मचिन्तन से पहले पापों की आलोचना जरूरी – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

किसी छोटे बच्चे से कुछ भी पूछो तो वह सत्य ही बोलता है। बच्चे को नही पता कि उसे क्या बोलना है। वह तो सहजता

हृदय में जिनेन्द्र भगवान हों तो कर्म मल शिथिल पड़ जाते हैं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

हींग की डिब्बी में हलवा भर दिया जाए तो हलवे का स्वाद और खुशबू दोनों ही हींग जैसी हो जाएंगे। उसका कारण है कि हलवा

मूलाचार ग्रंथ की ये गाथाएं आपके भावों को बनाएंगी निर्मल – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

धर्मानुरागी बंधुओं….आज हम आचार्य वट्टकेर द्वारा रचित मूलाचार ग्रन्थ की कुछ गाथाओं के बारे में बात करेंगे। उन्होनें इन गाथाओं में बताया है कि संसार

अपनी गलतियों और कमियों को स्वीकार करना सीखो – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

एक राजा था। उसने अपने मन्त्री को बुलाकर कहा कि हम सब के पास करने के लिए कुछ न कुछ निश्चित काम होते हैं। जैसे

चरवाहे ने ऐसे समझाया राजा को भगवान का काम – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

एक राजा था। उसने अपने मन्त्री को बुलाकर कहा कि हम सब के पास करने के लिए कुछ न कुछ निश्चित काम होते हैं। जैसे

भय की छाया में नए वर्ष में प्रवेश ना करें – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

धर्मानुरागी बंधुओं…अंग्रेजी नव वर्ष 2021 आज से आरम्भ हो गया है। हमारे जीवन में जब कोई नई चीज आती है या नई जगह जाते हैं

मेरी आत्मा ही परमात्मा है – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर

संसारी भव्य आत्मा अर्थात सकारात्मक सोच वाली आत्म अपनी आत्म-साधना से स्वयं की आत्मा को परमात्मा बना लेती है। आत्मा को परमात्मा बनने के लिए

व्रतों से आत्मा परमात्मा बनती है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

पाप कर्म के उदय से संसारी आत्म यह सोचती है कि वर्तमान काल में मोक्ष तो होना नहीं, फिर व्रत आदि धारण करने से क्या