जीवन के सुख-दुःख हमारे कर्मों का प्रतिफल -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जीवन में सुख-दुख और उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। यह सब कर्मों का प्रतिफल है। मनुष्य ने जैसा कर्म बन्ध किया है, उसी अनुरूप उसे फल

रत्नत्रय की पालना से पवित्र हो जाती है देह -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

मानव शरीर सप्तधातु रस, रक्त, मांस, मेद ,अस्थि, मज्जा एवं शुक्र से निर्मित है। मनुष्य का यह शरीर मलों से भरा हुआ है। शरीर में

चमत्कार की चाह में न छोडे़ें सम्यक कर्म की राह- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आधुनिक युग में जीवन मूल्यों की पहचान के स्थान पर ‘चमत्कार को नमस्कार‘ की भावना प्रबल हो गई है। सांसारिक सुखों की चाह में मनुष्य

संसार के सभी सुखों में महत्वपूर्ण है शांति-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

संसार के सभी सुखों में सबसे महत्वपूर्ण है शांति। दुनिया के सभी वैभव से पूर्ण व्यक्ति को भी शांति की तलाश है, लेकिन यह भौतिक

कपटरहित आंतरिक स्नेह ही है सच्चा वात्सल्य -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

मानव मात्र के प्रति कपटरहित आंतरिक स्नेह होना वात्सल्य गुण है। सम्यग्दर्शन के लिए वात्सल्य अंग का होना अति आवश्यक है। इस गुण के कारण

समय के साथ नहीं बदलते सम्यकत्व के सिद्धांत -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सम्यग्दृष्टि मनुष्य सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलता है। वह कैसा भी समय हो, कैसी भी परिस्थिति हो, हमेशा धर्म के अनुरूप आचरण करता है।

अशुभ कर्मों से बचाते हैं सम्यकदर्शन के आठों अंग -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सम्यक दर्शन के आठ अंग हमें अशुभ कर्मों से बचाते हुए सद्मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह आठ अंग हमारे जीवन

निःशंकित अंग में प्रसिद्ध अञ्जन चोर की कथा

सम्यकदर्शन के आठ अंगों में प्रसिद्ध पहले नि:शंकित अंग में प्रसिद्ध की कहानी धन्वन्तरि और विश्वलोमा पुण्यकर्म के प्रभाव से अमितप्रभ और विद्युतप्रभ नाम के

नि:कांक्षित अंग में प्रसिद्ध अनन्तमती की कथा

सम्यकदर्शन के आठ अङ्गों में से दूसरे अङ्ग नि:कांक्षित अंग में प्रसिद्ध की कहानी। अंगदेश की चम्पानगरी में राजा वसुवर्धन रहते थे। उनकी रानी का

निर्विचिकित्सा अंग में प्रसिद्ध उदायन राजा की कथा

सम्यकदर्शन के आठ अंगों में से तीसरे अंग निर्विचिकित्सा में प्रसिद्ध व्यक्तित्व की कहानी एक बार अपनी सभा में सम्यग्दर्शन के गुणों का वर्णन करते