भाग ग्यारह : भोजग्राम के लिए पिता तुल्य थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातगौड़ा घोड़े की परीक्षा करने में बहुत होशियार थे। घोड़े के शरीर में स्थित चिह्नों को देखकर ही वह घोड़े के गुण और अवगुण बता

भाग बारह : बच्चों के प्रति वात्सल्य का भाव रखते थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातगौड़ा बहुत ही दयालु थे। उनकी करुणा हर जीव के प्रति थी। लोग उन्हें दयासागर, अहिंसावीर भी कहते थे। जहां भी पशुओं की बलि दी

भाग तेरह : अपने से झगड़ने वाले को भी बड़े प्रेम से समझाते थे सातगौड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातगौड़ा बहुत ही शांत प्रकृति के थे। चाहे खेल हो या अन्य कोई कार्य, वह हमेशा प्रथम रहते थे। वह किसी से झगड़ते नहीं थे,

भाग चौदह : भाई के प्रवचन सुनकर सातगौड़ा के मन में बढ़ा था वैराग्य का भाव – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातगौड़ा हमेशा खादी के वस्त्र पहना करते थे क्योंकि वह मानते थे कि खादी के वस्त्रों में  जितनी सरलता और सहजता महसूस होती है, उतनी अन्य

भाग पन्द्रह : दादी से मिली थी सातगौड़ा को आहार दान और सेवा-भक्ति की शिक्षा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

सातगौड़ा की दादी आजी मां सातगौड़ा को सुबह और शाम अपने साथ जिन मंदिर लेकर जातीं। आजी मां का कहना था कि बच्चों को प्रेम

भाग सत्रह : मुनि देवेंद्रकीर्ती स्वामी से ली थी सातगौड़ा ने पहली बार क्षुल्लक दीक्षा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

अभी तक हम सातगौड़ा के ग्रहस्थ जीवन के व्यक्तित्व को जान रहे थे। अब हम उनके संयम जीवन के व्यक्तित्व को जानेंगे। सातगौड़ा के 41

भाग उन्नीस : क्षुल्लक शांतिसागर जी ने आगम के अनुसार आहारचर्या शुरू करवा कर पैदा की नई क्रांति – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

क्षुल्लक शांतिसागर महाराज से पहले जो मुनिराज थे, वह काल के प्रभाव के कारण जब आहार के लिए बस्ती (गांव) में जाते थे तो वस्त्र

भाग बीस : मिथ्यात्व का त्याग करके लोगों में जगाई जिनेंद्र भक्ति की ज्योति – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महराज

आचार्य शांतिसागर लोगों के आराधना करने के तरीके से दुखी थीे। उन्होंने देखा कि लोगों में कुदेव, राग-द्वेष, मिथ्या देवों की भक्ति विद्यमान है। लोग

भाग इक्कीस : हरिजनों का नैतिक जीवन ऊंचा बनाकर सच्चा उद्धार किया था आचार्य श्री शांतिसागर ने – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज हरिजनों के प्रति दया का अतुलनीय भाव रखते थे। वह कहते थे कि हरिजन गरीबी के कारण अपार कष्ट भोग रहे

भाग बाईस : आत्मशक्तियों को केंद्रित करके विपत्तियों के स्वागत के लिए तैयार हो जाते थे आचार्य श्री शांतिसागर- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य शांतिसागर महाराज जब जयपुर में चातुर्मास के लिए पहुंचे तो उन्होंने खानियों की नशियां में निवास किया। एक दिन नशियां का दरवाजा किसी ने