भाग तेईस : जब किसी की बुद्धि खराब होती है तो वह कहता है जमाने को खराब-आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आजकल यह बहुत सुनने में आता है कि जमाना बदल गया है, जमाना बदल गया है। यह बात सनातन से चली आ रही है। एक

भाग चौबीस : णमोकार मंत्र के माध्यम से मिथ्या मान्यताओं को दूर करते थे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की णमोकर मंत्र पर बहुत ही श्रद्धा और विश्वास था। उन्होंने णमोकार मंत्र के बल पर मिथ्या मान्यताओं को दूर किया।

भाग पच्चीस : गर्म दूध अंजुलि में डालने और आहार में अंतराय होने पर भी क्रोधित नहीं हुए थे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

मुनिपद में मुनियों के सामने बार-बार अनेक कष्ट आते रहते हैं। इसी तरह एक बार आचार्य श्री शांतिसागर महाराज चर्या के लिए निकले। एक श्रावक

भाग छब्बीस : लोकवाणी के स्थान पर जिनेंद्र की वाणी को मानना ही सर्वथा उचित-आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने मंदिर के पैसों के बारे में बड़ी बात कही थी । महाराज श्री ने कहा था कि मंदिर की संपत्ति

भाग सत्ताईस : जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक पूरे विधान से करने पर हर स्थान की हो जाती है शुद्धि – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने वास्तुशुद्धि करने का कारण बताते हुए कहा था कि घर, दुकान आदि बनाते समय जो हिंसा होती है , वृक्षादि

भाग अट्ठाईस : जीव वध बंद करने और पशुओं का बलिदान रोकने से बढ़ेगी पृथ्वी की ऊर्वरा शक्ति-आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का दया पथ पर दृढ़ विश्वास था। वह जीवों की बलि या अन्य किसी भी कारण से उन्हें मारने के सख्त

भाग उनतीस : क्षुल्लक बनने से पहले केशों का लोचन करना मार्ग के विरुद्ध-आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का आचार(आचरण) शास्त्र का ज्ञान बहुत था। उस समय के बड़े-बड़े विद्वान उनके पास आकर अपनी शंका का समाधान करते थे।

भाग तीस : हमेशा क्रोध और कषाय से मुक्त रहते थे आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के जीवन के कई घटनाएं ऐसी हैं, जो दिगम्बर संतों के लिए अनुकरणीय हैं। बात है ग्राम कोगनोली की, जहां गांव

भाग इकत्तीस : श्रावक ने आहार में किया छल तो आचार्य श्री ने स्वयं को कष्ट देकर किया कड़ा प्रायश्चित – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का मुनि अवस्था का दूसरा चातुर्मास नसलापुर में हुआ था। उसके बाद आचार्य श्री का विहार ऐनापुर हुआ। वहां एक घटना

भाग बतीस : अनेकों बार सर्प के लिपटने पर भी बिना घबराए ध्यान में ही रहे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य शांतिसागर महाराज ने कई बार सर्पकृत उपसर्ग सहे थे। एक बार उनसे किसी ने पूछा कि सर्पकृत भयंकर उपसर्ग होते हुए भी आपकी आत्मा