भाग तैंतीस : दुष्टों पर भी अमृत वर्षा करते थे आचार्य श्री शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

बात लगभग वर्ष 1930 की है, जब आचार्य श्री शांतिसागर महाराज धौलपुर जिले के राजाखेड़ा इलाके में आए थे। तब एक धर्म विद्वेषी ब्राह्मण अपने

भाग चौंतीस : आचार्य श्री के प्रभाव से व्यसनी व्यक्ति ने छोड़े सारे कुकर्म और बन गया मुनि – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

एक बार एक व्यसनी व्यक्ति था। वह जैन होते हुए भी णमोकार मंत्र के बारे में भी नहीं जानता था और पाप कार्यों में लगा

भाग पैंतीस : आचार्य श्री शांतिसागर की जिन साधना के फल से गूंगा लगा था बोलने – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

बात कोल्हापुर के नीमसिर ग्राम के पैंतीस वर्ष युवक की है, लोग उसे अण्णाप्पा दाढ़ीवाले के नाम से जानते थे। शास्त्र चर्चा बहुत करता था, अचानक एक

भाग छत्तीस : हजारों चीटियां चढ़ी शरीर पर लेकिन नहीं टूटा था आचार्य श्री का ध्यान – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

एक बार आचार्य श्री शांतिसागर महाराज एक दिगम्बर जैन मन्दिर में निंद्राविजय तप कर रहे थे। शाम का समय हो गया था, पुजारी आया और दीपक

भाग सैंतीस : आत्मध्यान में इंद्रीय सुख नहीं, वहां तो है केवल आत्मा का आनंद-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की चर्या पंचम काल में भी चतुर्थ काल जैसे थी। आचार्य श्री प्रतिदिन 40 से 50 पेज का स्वाध्याय करते थे।

भाग अढतीस : उपवास या अल्प आहार से प्रमाद कम होकर बढ़ती है विचार-शक्ति-आचार्य शांतिसागर महाराज – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने एक बार कहा था कि उपवास में आत्मा नहीं है, इसके बावजूद उपवास करना चाहिए, क्योंकि उपवास या अल्प आहार

भाग उनतालीस : सम्यक्त्व की महिमा इतनी अधिक है कि उससे प्राप्त किया जा सकता है मोक्ष – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने सम्यक्त्व के बारे में कहा था कि शुद्ध आत्मा का खरा अनुभव सम्यक्त्व है। आचार्य श्री ने कहा था कि

भाग चालीस : निश्चय रूपी फल बढ़ने से हो जाता है व्यवहार रूपी फूल संकुचित – आचार्य श्री शांतिसागर महाराज

आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने व्यवहार और निश्चय का समन्वय बड़े सुंदर तरीके करते हुए कहा था कि व्यवहार फूल के समान है। वृक्ष में

भाग इकतालीस : सात व्यसनों और पांच पापों को छोड़कर राजा को करना चाहिए शासन-आचार्य शांतिसागर महाराज

एक बार सांगली राज्य के अधिपति श्रीमंत राजा साहब आचार्य शांतिसागर महाराज के दर्शन के लिए आए। आचार्य श्री ने सच्चे धर्म का स्वरूप बताते

भाग बयालीस : केशलोंच आत्मविकास का कारण, इससे होती है जिनधर्म की प्रभावना-आचार्य शांतिसागर महाराज

एक बार आचार्य शांतिसागर महाराज से किसी ने पूछा कि क्या केशों को उखाड़ने में आपको कष्ट नहीं होता, हमने तो केशलोंच के समय आपके चेहरे