मुनि निंदा के कारण अपमानित हुआ इन्द्र – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

रावण से इन्द्र विद्याधर युद्ध में पराजित हुआ। रावण ने इंद्र को पराजित कर उसे बंधक बनाकर रखा फिर कुछ समय बाद उसने इन्द्र को

श्रवण की संगति से कर्म बदला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

पद्मपुराण के पर्व 22 में एक कथा है, जो कर्म के फलों को बताती है। कथा यह बताती है कि मनुष्य के अंदर कब अधर्म

कर भला तो हो भला – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

जो जीव किसी का अच्छा करता है तो बदले में उसे अच्छाई ही मिलती है। वहीं जो जीव किसी का बुरा करता है तो उसे

कर्म का फल अवश्य मिलता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

यह बात सभी जानते हैं कि जब श्रीराम वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे तो जटायु नाम का पक्षी उनके साथ हो था। उस

वैरभाव का दुख कई भवों तक भोगना पड़ता है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

वैरभाव अनेक जन्मों तक दुःख का कारण बनता है। पद्मपुराण के पर्व 5 में वैरभाव के फल को बताने वाली कथा आती है। कथा इस

निर्मल भाव से ही होते है अच्छे कर्म – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी

निर्मलभाव को धारण करने वाला ही अच्छे कर्म कर सकता है। अच्छे कर्म से मतलब आपके कार्य से किसी को कष्ट नही पहुंचे। पद्मपुराण के

कर्म किसी को छोड़ता नहीं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

पद्मपुराण में रावण के जीवन का एक प्रसंग आता है। आप सब जानें और कर्म के महत्व को समझें। रावण की आत्मग्लानि से यह सिद्ध

अपनी कुल नगरी वापस पाने के लिये रावण ने की दिग्विजय – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

पद्मपुराण में एक प्रसंग है जिसमें रावण ने राजा इंद्र को जीता और अपनी कुल परंपरा से चली आ रही लंकानगरी को पुनः प्राप्त किया।

कर्मों के खेल निराले – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

महलों में सोने वाला वन-वन भटकता है। संगीत की आवाज सुनकर उठने वाले की नींद क्रूर जानवरों की आवाज सुनकर खुलती है। इससब को क्या

सामने वाला भले ही कमजोर हो पर कर्म बलवान होते हैं – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्यसागर जी महाराज

कभी किसी को कमजोर समझकर पीड़ा, कष्ट नहीं देनी चाहिए। चाहे वह कमजोर हो पर कर्म बलवान होते हैं वह किसी को नहीं छोड़ते हैं,