मैं कौन? मैं कहां से आया हूं?
कब तक अपने आप को पहचान पाऊंगा? मौन साधन का पहला दिन। जिस कमरे में भगवान विराजमान थे, मैं वहां सुबह 4 बजे से मंत्रों
अकेला महसूस कर रहा हूं, मन स्थिर नहीं है
विचार जो हैं वो पुराने हैं, उसी में शुभ अशुभ का द्वंद है अपने आप को अकेला महसूस कर रहा हूं। घबहाट भी हो रही
पता ही नहीं चला कि आंखें कब नम हो गईं
आज मौन के चौथे दिन, मैंने यह महसूस किया किया जो बहुत पहले कर लेना चाहिए था वह आज कर रहा हूं। बस इसी बात
संन्यास और संसार की चमक साथ नहीं रह सकती
दूध से तेल निकालने की कोशिश बेकार है, क्योंकि दूध से तो घी ही निकलेगा आज कुछ ऐसा लगा जैसे मुझे इस अवस्था में पहले
दूसरा दिन : शरीर का परिवर्तन होता है, यह सोच मृत्यु के भय को कर देगी दूर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
मौन साधना का दूसरा दिन। चिंतन का अविर्भाव सहसा नहीं होता है। मन की जितनी स्थिरता होगी, उतना ही चिंतन निर्मल,नवीन और जीवन को बदल
पहला दिन : चिंतन से मजबूत होती है आत्मशक्ति- अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
आज मौन साधना के पहले दिन और पहला चिंतन करते हुए बहुत समय तक यही सोचता रहा कि क्या चिंतन करूं। आज चिंतन में यह
चौथा दिन : अपने दोषों को स्वीकार करना ही सबसे बड़ा आत्मधर्म – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज भीलूड़ा में चातुर्मास रत हैं। मौन साधना की इस साधना में प्रातः 4 बजे समाज के अनेक लोग आते हैं
तीसरा दिन : प्रतिकार से तो बढ़ता है संक्लेश – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
मौन साधना के तीसरे दिन उपवास कर अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने जब अपनी स्वयं की गलती को स्वीकार किया तो उनकी आंखें नम
छठवां दिन : अप्रेक्षा न रखें तो ही बेहतर – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
दुःखों से बचने के लिए अप्रेक्षा नहीं रखनी चाहिए, आज चिंतन में यह विचार आते ही मन खिन्न हो गया। बार- बार मन में आने
पांचवा दिन : दोषों से बचने पर ही जीवन सुखद और शांतिमय – अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
मौन साधना का पांचवा दिन। सोचते-सोचते समय का पता ही नहीं चला। सुबह 2 बजे से सोच रहा था। जब वापस चिंतन से उठा तो