छहढाला तीसरी ढाल छंद-1

तीसरी ढाल सच्चा सुख और द्विविध मोक्षमार्ग का लक्षण आतम को हित है सुख, सो सुख आकुलता बिन कहिये । आकुलता शिवमाँहि न तातैं, शिव-मग

छहढाला तीसरी ढाल छंद-2

छहढाला तीसरी ढाल निश्चय रत्नत्रय का स्वरूप पर-द्रव्यन तें भिन्न आप में, रुचि सम्यक्त्व भला है। आप रूप को जानपनो, सो सम्यग्ज्ञान कला है॥ आप

छहढाला तीसरी ढाल छंद-3

तीसरी ढाल व्यवहार सम्यग्दर्शन जीव-अजीव तत्त्व अरु आस्रव, बन्धरु संवर जानो। निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको, ज्यों का त्यों सरधानो॥ है सोई समकित व्यवहारी, अब

छहढाला तीसरी ढाल छंद-5

तीसरी ढाल मध्यम, जघन्य, अन्तरात्मा और सकल परमात्मा का स्वरूप मध्यम अन्तर आतम हैं जे, देशव्रती अनगारी। जघन कहे अविरत – समदृष्टी, तीनों शिवमगचारी॥ सकल

छहढाला तीसरी ढाल छंद-6

तीसरी ढाल निकल परमात्मा का स्वरूप और उसके ध्यान का उपदेश ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल – वर्जित, सिद्ध महन्ता। ते हैं निकल अमल परमातम, भोगैं शर्म

छहढाला तीसरी ढाल छंद-8

तीसरी ढाल आकाश, काल और आस्रव का स्वरूप व भेद सकल – द्रव्य को वास जास में, सो आकाश पिछानो। नियत वरतना निशि-दिन सो, व्यवहार

छहढाला तीसरी ढाल छंद-11

तीसरी ढाल सम्यक्त्व के पच्चीस दोष और आठ गुण वसु मद टारि निवारि त्रिशठता, षट् अनायतन त्यागो। शंकादिक वसु दोष बिना, संवेगादिक चित पागो।। अष्ट

छहढाला तीसरी ढाल छंद-12

तीसरी ढाल सम्यक्त्व के अंगों का वर्णन जिन वच में शंका न धार ,वृष भव-सुख-वांछा भानै। मुनि-तन मलिन न देख घिनावै, तत्त्व कुतत्त्व पिछानै।। निजगुण

छहढाला तीसरी ढाल छंद-13

तीसरी ढाल वात्सल्य और प्रभावना अंग और मदों का वर्णन धर्मीसों गौ-बच्छ-प्रीतिसम, कर जिन-धर्म दिपावै। इन गुणतैं विपरीत दोष वसु, तिनकों सतत खिपावै।। पिता भूप