छहढाला पहली ढाल छंद 02

    पहली ढाल ग्रन्थ रचना का उद्देश्य व जीव की चाह जे त्रिभुवन में जीव अनन्त, सुख चाहैं दु:खतैं भयवन्त । तातैं दु:खहारी सुखकार,

छहढाला पहली ढाल छंद 03

पहली ढाल संसार भ्रमण का कारण ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्याण। मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि॥3।। अर्थ – हे

छहढाला पहली ढाल छंद 05

छहढाला पहली ढाल ग्रन्थ रचना का उद्देश्य व जीव की चाह निगोद के दु:ख व निगोद से निकलकर प्राप्त पर्यायें एक श्वांस में अठदस बार,

छहढाला पहली ढाल छंद 04

पहली ढाल कृति की प्रामाणिकता और निगोद के दु:ख तास भ्रमन की है बहु कथा, पै कछु कहूँ कही मुनि यथा। काल अनन्त निगोद मंझार,

छहढाला पहली ढाल छंद 06

पहली ढाल त्रस पर्याय की दुर्लभता और तिर्यंचगति के दु:ख दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी। लट पिपीलि अलि आदि शरीर, धर धर

छहढाला पहली ढाल छंद 07

पहली ढाल तिर्यंच गति में असैनी और सैनी के दु:ख कबहूँ पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो। सिंहादिक सैनी ह्वै व्रूर, निबल पशू

छहढाला पहली ढाल छंद 09

पहली ढाल तिर्यंचगति में दु:खों की अधिकता और नरकगति की प्राप्ति का कारण वध-बन्धन आदि दु:ख घने, कोटि जीभतैं जात न भने। अति संक्लेश-भावतैं मर्यो,

छहढाला पहली ढाल छंद 10

पहली ढाल नरक की भूमि स्पर्श और नदीजन्य दु:ख तहाँ भूमि परसत दुख इसो, बिच्छू सहस डसें नहिं तिसो। तहाँ राध-शोणित-वाहिनी, कृमि-कुल-कलित-देह दाहिनी।।10।। अर्थ – उस