छहढाला पहली ढाल छंद 11

पहली ढाल नरक में सेमर वृक्ष, सर्दी और गर्मी के दु:ख सेमर-तरु-जुत दल-असिपत्र-असि ज्यों देह विदारैं तत्र। मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता

छहढाला पहली ढाल छंद 12

पहली ढाल नरक में अन्य नारकियों व असुरकुमारों द्वारा उदीरित और प्यास के दु:ख तिल-तिल करैं देह के खण्ड, असुर भिड़ावैं दुष्ट प्रचण्ड। सिन्धु-नीरतैं प्यास

छहढाला पहली ढाल छंद 14

पहली ढाल मनुष्यगति में गर्भवास और प्रसवजन्य दु:ख जननी-उदर बस्यो नव मास, अंग-सकुचतैं पाई त्रास। निकसत जे दु:ख पाये घोर, तिनको कहत न आवै ओर।।14।।

छहढाला पहली ढाल छंद 15

छहढाला पहली ढाल मनुष्यगति में बाल्यावस्था, जवानी व वृद्धावस्था के दु:ख बालपने में ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी-रत रह्यो। अर्धमृतक सम बूढ़ापनो, कैसे रूप

छहढाला पहली ढाल छंद 16

छहढाला पहली ढाल देवगति में भवनत्रिक के दु:ख कभी अकाम निर्जरा करै, भवनत्रिक में सुर-तन धरै। विषय-चाह-दावानल दह्यौ, मरत विलाप करत दु:ख सह्यो।।16।। अर्थ – कभी

छहढाला पहली ढाल छंद 17

छहढाला पहली ढाल देवगति में वैमानिक देवों के दु:ख जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शन बिन दु:ख पाय। तहँ ते चय थावर-तन धरै, यों परिवर्तन पूरे

छहढाला पहली ढाल छंद 08

छहढाला पहली ढाल पंचेन्द्रिय पशुओं के निर्बलता आदि अन्य दु:ख कबहूँ आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन। छेदन भेदन भूख पियास, भार वहन हिम