छहढाला पांचवी ढाल छंद-1

छहढाला पांचवी ढाल भावनाओं के चिन्तन से लाभ मुनि सकलव्रती बड़भागी, भव भोगनतें वैरागी । वैराग्य उपावन माई, चिन्तें अनुप्रेक्षा भाई ।। 1।। अर्थ- हे भाई!

छहढाला पांचवी ढाल छंद-2

छहढाला पांचवी ढाल भावनाओं का फल इन चिन्तत समसुख जागै, जिमि ज्वलन पवन के लागे । जब ही जिय आतम जानैं, तब ही जिय शिवसुख

छहढाला पांचवी ढाल छंद-3

छहढाला पांचवी ढाल अनित्य भावना जोवन गृह गोधन नारी, हय गय जन आज्ञाकारी । इन्द्रिय-भोग छिन थाई, सुर-धनु चपला चपलाई ॥3॥ अर्थ – जवानी, घर, गाय,

छहढाला पांचवी ढाल छंद-4

छहढाला पांचवी ढाल अशरण भावना सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि काल दलेतें । मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावै कोई ॥4॥

छहढाला पांचवी ढाल छंद-5

छहढाला पांचवी ढाल संसार भावना चहुँगति दुख जीव भरै हैं, परिवर्तन पंच करै हैं। सब विधि संसार असारा, यामें सुख नाहिं लगारा ॥5॥ अर्थ – जीव

छहढाला पांचवी ढाल छंद-6

छहढाला पांचवी ढाल एकत्व भावना शुभ अशुभ करम-फल जेते, भोगै जिय एकहि ते-ते। सुत दारा होय न सीरी, सब स्वारथ के हैं भीरी ॥6॥ अर्थ- पुण्य