भक्तामर स्तोत्र परिचय

भक्तामर स्तोत्र परिचय भक्तामर स्त्रोत्र का महत्त्व एवं विशेषताएं आचार्य मानतुंग स्वामी द्वारा रचित भक्तामर स्तोत्र संसार के मनुष्यों के लिए एक अमृत के समान

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 1

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 1 सर्व विघ्न उपद्रवनाशक भक्तामर – प्रणत मौलि मणि – प्रभाणा – मुद् द्योतकं दलित-पाप तमो वितानम् । सम्यक् प्रणम्य

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 2

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 2 शत्रु तथा शिरपीडा नाशक यःसंस्तुतः सकल-वांग्मय-तत्त्वबोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोक-नाथै । स्तोत्रैर्जगत्त्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥ अन्वयार्थ : सकल –समस्त ।

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 4

  ]भक्तामर स्तोत्र काव्य – 4 जलजंतु निरोधक वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्, कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया । कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रम्, को वा तरीतु-मल- मम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 5

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 5 नेत्ररोग निवारक सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्-मुनीश ! कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृतः । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगो मृगेन्द्रम्, नाभ्येति किं निज-शिशोः परिपाल-नार्थम् ॥5॥

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 7

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 7 सर्व विष व संकट निवारक त्वत् संस्तवेन भव-संतति-सन् निबद्धम् पापं क्षणात्क्षय-मुपैति शरीर-भाजाम् । आक्रांत-लोक-मलिनील-मशेष-माशु, सूर्यांशु-भिन्न-मिव शार्वर-मन्धकारम् ॥7॥ अन्वयार्थ – त्वत्संतवेन –

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 8

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 8 सर्वारिष्ट निवारक मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद- मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु, मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 9

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 9 सर्वभय निवारक आस्तां तव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं, त्वत् संकथाऽपि जगतां दुरितानि हंति । दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव, पद्मा करेषु जलजानि विकास-भांजि

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 10

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 10 कूकर विष निवारक नात्यद्भुतं भुवन-भूषण !-भूतनाथ ! , भूतैर् गुणैर् भुवि भवन्त -मभिष्टु-वंतः । तुल्या भवंति भवतो ननु तेन

भक्तामर स्तोत्र काव्य – 11

  भक्तामर स्तोत्र काव्य – 11 इच्छित-आकर्षक दृष्ट्वा भवंत-मनिमेष-विलोकनीयं, नान्यत्र तोष-मुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकर-द्युति-दुग्ध-सिन्धो, क्षारं जलं जलनिधे रसितुँ क इच्छेत् ॥11॥ अन्वयार्थ