पांचवें परिग्रह पाप में प्रसिद्ध श्मश्रुनवनीत की कहानी

अयोध्यानगरी में भवदत्त नाम का सेठ रहता था। उसकी स्त्री का नाम धनदत्ता था और पुत्र का नाम लुब्धदत्त था। एक बार वह लुब्धदत्त व्यापार

चौथे कुशील पाप में प्रसिद्ध यमदण्ड कोतवाल की कहानी

आहीर देश के नासिक्य नगर में राजा कनकरथ रहते थे उनकी रानी का नाम कनकमाला था। उनका एक यमदण्ड नाम का कोतवाल था। उसकी माता

सम्यक चर्या का पालन करने वाला ही मोक्ष मार्ग का सच्चा राही- अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आधुनिक सुख-सुविधाओं और विकास की अंधी दौड़ में आज व्यक्ति के दैनिक जीवन और वातावरण में बड़ा बदलाव आ गया है। मनुष्य आध्यात्मिक और धार्मिक

सम्यक दर्शन के लिए धर्म के मूल रूप को पहचानना जरूरी

काल का प्रभाव कहें या सृष्टि में पाप कर्मों की बढ़ती मात्रा। संसार में चारों ओर अधर्म एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है। धर्म के मूल

जीवन की आवश्यकताएं बनती हैं दुःखों का कारण- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

जीवन की आवश्यकताएं कर्म का कारण हैं। इन आवश्यकताओं के कारण ही अच्छे और बुरे कर्मों का बंधन होता है। रोटी, कपड़ा और मकान की

जो प्रशंसा के साथ गलतियां भी बताए, वही सच्चा हितकारी-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

यह तुमने अच्छा किया। यह तुमने गलत किया। तुम्हें अपनी गलती को स्वीकार करना चाहिए। यह बात बताने वाला ही सच्चा मित्र होता है, क्योंकि

सत्य बोलें, विश्वसनीय बनें -अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

आगम का एक-एक शब्द कल्याणकारी दुनिया में गवाही उसी की मान्य है, जो स्वयं विवादों से रहित है। विश्वास योग्य है और सत्य का पक्षधर

व्यक्ति की नही उसके गुणों की होती हैं पूजा- अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

व्यक्ति के भौतिक रूप नहीं, बल्कि उसमें समाहित जीवन मूल्यों का महत्व है। भौतिक रूप क्षणिक है, लेकिन गुण, सिद्धांत और जीवन मूल्य सदियों तक

सद्भावी गुरू के सान्निध्य से ही संभव है सम्यक दर्शन – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर

सम्यक दर्शन अर्थात सकारात्मक सोच के बिना जीवन का हर कार्य निष्फल है और सम्यक दर्शन के लिए जरूरी है हर भव में गुरू का

भगवान जिनेंद्र के उपदेशों पर नहीं होनी चाहिए कोई शंका-अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

आज व्यक्ति की पहचान उसके बाहरी गुणों एवं आचरण से की जाती है। जैसे व्यक्ति अच्छा है, सकारात्मक सोच वाला है, सम्यक दृष्टि वाला है