श्रावक : जय जयकार से ही पुण्य का संचय – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

निर्मल भावों से जिनेन्द्र भगवान के नाम का उच्चारण और जय जयकार करने मात्र से ही सम्पूर्ण कर्मो का नाश हो जाता है। पद्मपुराण के

श्रावक : व्यसनों से मिलने वाले दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

एक व्यसन के प्रभाव से भी मनुष्य अनेक दु:ख भोगता है तो फिर जो सातों व्यसन करता है उसे जो दु:ख मिलते होंगे उनका वर्णन

श्रावक : धर्म के साथ जीने वालों के लिए कुछ भी असाध्य नहीं – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

मनुष्य जन्म के बाद जो धर्म के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है उसे संसार के सारी खुशी मिलती है। वह शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और

श्रावक : जो श्रावक बन धर्म-ध्यान करता है उसे सब खुशियां मिलती हैं – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

चारों गति में मनुष्य गति श्रेष्ठ है। मनुष्यभव में जन्म लेकर जो संस्कारों के माध्यम से श्रावक बनकर धर्म ध्यान करता है उसे चारो और

श्रावक : जैन दर्शन में ये है शास्त्र के चार रूप – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

हम जो पढ़ते हैं वह जिसने लिखा है उस पर श्रद्धा होने के बाद उसे पढ़ने से कर्मो की निर्जरा होती है। जैन धर्म में

श्रावक : आहार दान ऐसे करना चाहिए – अंतर्मुखी मुनि पूज्यसागर जी

रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लोक संख्या 113 में बताया गया है कि आहार दान देते समय श्रावक (धर्मात्मा) को क्या सावधानी रखनी चाहिए। नवपुण्यैः प्रतिपत्तिः सप्तगुण समाहितेन शुद्धेन।

श्रावक : स्वयं को शुद्ध कर जाप करें – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

कर्म निर्जरा और आत्मशांति के लिए श्रावक जाप करते हैं। जाप करने से पहले हाथ और शरीर के अंगों की शुद्धि करनी चाहिए। इसे सकलीकरण

श्रावक : आहार दान से उत्तम कोई दान नहीं है – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

अमितगति कृत श्रावकाचार में आहार दान का महत्व बताते हुए कहा है कि जैसे सूर्य के बिना दिन नही हो सकता है वैसे ही आहार

श्रावक : इन सात स्थितियों में छोड़ देना चाहिए भोजन– अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

श्रावक जब भोजन करने बैठता है तो उसे सात स्थितियों में भोजन छोड़ देना चाहिए । इसे अन्तराय कहते हैं। सात प्रकार की अन्तराय इस

राम की प्रार्थना – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज

पद्मपुराण पर्व अस्सिवाँ में वर्णन आया है कि रावण के शरीर का अग्निसंकार के बाद राम-सीता ने स्नेहीजनों के साथ लंका में प्रवेश किया। उन्होंने